रविवार, 18 दिसंबर 2016

61.   दिनांक:18/12/2016

विज्ञापन का मूल तत्व यह माना जाता है कि जिस वस्तु का विज्ञापन किया जा रहा है उसे लोग पहचान जाएँ और उसकी गुणवत्ता व उपयोग को पहचान सकें,ताकि विज्ञापनदाता का उत्पादन अधिक से अधिक बिक सकें।विज्ञापन का चलन काफी पुराना है।पहले ज़माने में ढोल-तमाशे बजाकर,नाच-गा कर उत्पादनों की जानकारी दी जाती थी।विज्ञान की तरक्की के साथ-साथ विज्ञापन का भी तरीका बदलता गया और हाईटेक होता जा रहा है।पहले के ज़माने में विक्स का विज्ञापन बच्चे को एक माँ के द्वारा विक्स लगाकर दर्शाया जाता था,दूसरी तरफ पार्लेजी बिस्कूट में हष्ट-पुष्ट बच्चे का चित्र लगाकर विज्ञापन दिया जाता था,परंतु समय बदलने के साथ-साथ विज्ञापन की दुनिया में पूर्णतः नग्ता व अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए विज्ञापन बनाये जा रहे है।आज विज्ञापन में सबसे ज़्यादा प्रचलित व सेलएबल विज्ञापन का माध्यम सेलिब्रिटीज को इस्तिमाल करते हुए टीवी विज्ञापन का प्रभाग ज़्यादा है ।जैसे की आप जानते है आज हर घर में टीवी अनिवार्य रूप से होता हैं और परिवार के साथ आदमी मनोरंजन करता है परंतु अब टीवी पर विज्ञापन ज़्यादा होते हैं और कार्यक्रम कम होते है। इसी बात से टीवी के विज्ञापन की प्रवाह की पुष्टि होती है कई दफा तो परिवार के साथ टीवी देखते हुए कई विज्ञापन शर्मसार कर देते है समय-समय पर सूचना व प्रसारण मंत्रालय इन पर कार्यवाही भी करते है परंतु आजकल टीवी पर एक मसाले के विज्ञापन ने माँ को सरे आम नीचा दिखा दिया है यह विज्ञापन सदी के महानायक के द्वारा किया जा रहा है और वह कहते है कि मैं तो हर किसी की माँ के हाथ के खाने के स्वाद का रिस्क न लेते हुए विज्ञापित मसालों को अपने साथ ले जाता हूँ।हमारे पुराणों व हर धर्म में माँ का दर्जा भगवान से भी ऊपर माना गया है धरती पर माँ को भगवान माना जाता है ।अतः मुझे लगता है कि इस मसाले के प्रसारण पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।विज्ञापन करने वाली कम्पनी,विज्ञापन बनाने वाली कम्पनी व कलाकारों पर उचित कार्यवाही करके सूचना व प्रसारण मंत्रालय को माँ के होने वाले अपमान को बचाना चाहिए।

सोमवार, 20 जून 2016

दिनांक:20/06/2016

योग का अर्थ जोड, जोड  का अर्थ सबल होना,ज़्यादा होना, सदियों से हम भारतियों के जीवन का योग हिस्सा थीहमारी जीवन शैली भी इस प्रकार थी सुबह सोकर उठने से लेकर रात सोने  तक हर श्रण हम शारीरिक क्रिया इस प्रकार करते थे वो अपने आप योग होता थाजैसे सुबह उठकर धरती माँ  अपने बुज़ुर्गों के चरण स्पर्श करना,उकड़ू बैठ कर दातून करना वो भी पेड़ से तोड़कर,जंगल जाना लोटा पकड़कर, नहाना कुए से पानी लाकर,सभी क्रिया पर ध्यान दे तो स्वयं समझ जायेगा कि अपने दादा,बाबा क्यों स्वस्थ थे और योग का क्या महत्व है।अंग्रेज़ों ने और इन चलचित्रों(सिनेमा) ने हमें अपनी जीवन शैली से भटका दिया और अच्छाई से बुरी जीवन शैली पर चले गये जिसके परिणाम स्वरूप आज केवल शारीरिक बल  खो रहे है अपितु सोचने, समझने,सहनशक्ति  खो चुके है।बात- बात पर गुस्सा करते है और डॉक्टर के पास जाना पड़ता है आज किसी डॉक्टर के पास चले जाओ वो आपको जीवन शैली सुधारने की सलाह  यह कहते हुए देता है मेरी दवा का रोल आपकी इच्छा शक्ति और जीवन शैली के परिवर्तन से आप जल्द स्वस्थ हो पायेंगे।आज इस योग विघा को जो केवल भारत वर्ष की थी 5000 वर्ष  पुरानी उसे हमें हनुमान जी की शक्ति की तरह याद करना पड़ रहा है और उसे याद दिलाने के लिए फिर पश्चिम के तरीके   टी.बी. का सहारा लेना पड़ रहा हैकल 21-06-2016 को योग दिवस के रूप में बना रहें है ।पश्चिम छोड़ो भारतीय कम्पनियों का भी योग के नाम पर अरबों का व्यापार चल रहा हैं जैसे - योगा मैट (पहले दरी पर हो जाता था )योगा कपडे,बुक,योगा कैसिट,सी.डी.आदि का व्यापार दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है साथ ही इन व्यापार में रोज़गार भी दिया।  आप जानते है कुछ बाबाओं ने तो अपने व्यापार का सम्राज्य खड़ा कर लिया है साथ ही वो राजनीती में भी दखल- अंदाज़ करने लगें हैं योग के साथ योग टीचरों की भी फौज खड़ी हो गयी है अब तो  कई विश्वविघालय में योगा पाठ्यक्रम सम्मिलित कर लिया गया है योगा में भी विभिन्न  योग के  पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा है जैसे जीवन जीने का (लाइफ ऑफ़ स्टाइल )योग,शारीरिक क्रिया का योग, रहन- सहन(पोशचर) का योग, मस्तिष्क  का योग,हड्डी का योग (फिजोधेरिप्य) आदि आदि।योग की महिमा इतनी बढ़ गई है कि अब लोग अपने पुराने धंदे छोड़ कर योग गुरु बन रहें है और बाबाओं की तरह अपनी योग की किताबें योग का सामान बेच रहें है और तो और इस काम में पोलिटिकल पार्टियां और हमारे  अख़बार भी इस योग को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहें हैंइस साल योग टीचरों की कल बहुत कमी महसूस हो रही हैआशा नहीं पूर्ण विश्वास है अगले साल योग टीचरों की कमी नहीं रहेंगी अगर हम विलासता छोड़ कर भारतीय संस्कृति और सभ्यता को अपना लेंगे तो।कल योग दिवस पर देखते है योग कितना होगा और उसका जोड़ कितना होगा हम केवल दिखावे के लिए काम करते है की अपनी संतुष्टि के लिए। योग दिवस ज़रूर मनायें पर अपने साथ अपने बच्चों को इस तरह के दिन चर्या सिखाएं कि वो दिखावे के लिए या योग करने के लिए मजबूर हो।सभी के स्वस्थ जीवन और खुशहाल जीवन के लिए लेखक कामना करते है।


रविवार, 1 मई 2016

पी.एम.साहब अगर आप  वास्तव में भारत को सोने की चिड़िया बनाना चाहते है तो भारतीय प्रशासनिक सेवकों और नेताओं पर लगाम लगाइये तभी भारत वर्ष के हर घर में चूला जलेगा।



शुक्रवार, 4 मार्च 2016

होली के अवसर पर चाइनीज़ रंगों से नुकसान
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा आदेश उत्तरप्रदेश सरकार को चाइनीज़ मंजे के भण्डारण,विक्रय को प्रतिबन्ध करने के सम्बन्ध में किया गया हैं।निश्चित रूप से ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में चीन में निर्मित मंजो के प्रयोग से जो दुर्घटनाएं होती हैं और पर्यावरण का नुकसान होता है उसके लिए यह निर्णय स्वागत योग्य है।क्या हमें इसी तरह भारतीय या चाइनीज़ के उन पदार्थों पर निगरानी नहीं करनी चाहिए जो शारीरिक व पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं हमारी संस्था लोकस्वर उत्तरप्रदेश शासन द्वारा चीन से निर्मित मंजों को रोकने के लिए जो कार्यवाही कर रही है उसके लिए हम धन्यवाद देते हैं,साथ ही आने वाले भारत के बहुत बड़े  पर्व को जो आपसी भाईचारा व प्रेम को बढ़ाता हैं ऐसे होली के पर्व पर प्रयोग होने वाले चाइनीज़ रंगों का प्रयोग पूर्णताः बंद करने की अपील करते हैं।यह रंग पर्यावरण को ही नुकसान नहीं पहुँचाते अपितु  मनुष्य की त्वचा,आँख और बालों को भी नुकसान पहुँचाते हैं।इसका खामियाज़ा उस मनुष्य को और उसके परिवार को जीवन पर्यन्त भोगना पड़ता है।अतः इन रंगो का प्रयोग अपने मण्डल में हो ऐसी प्रक्रिया अपनायें साथ ही दीवाली पर आने वाले चाइनीज़ पटाखे जो पूर्व में कई आगरा मण्डल  के निवासियों को नुकसान पहुँचा चुकें हैं उनका बहिष्कार करें ।अतः इसके प्रतिबन्ध के लिए आगरा प्रशासन अभी से  उचित कार्यवाही करें व हमारी संस्था लोकस्वर को अनुग्रहित करें।


बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

                रेलवे एक तीर से कई निशाने
पुराने ज़माने में अग्रेज़ों ने जो रेलवे की लाईनें बिछाई थी, आज वो रेलवे लाईने इतनी सार्थक नज़र  रही है जिससे जाम के साथ  जनहानि,पर्यावरण,कम खर्चीली यातायात व्यवस्था साथ ही रेलवे विभाग की आय और शहर में गन्दगी को बचाया जा सकता हैं,अगर उन रेलवे लाईनो (रेलवे स्टेशन ) पर हम एक लोकल ट्रैन चला दें तो इन समस्त परेशानियों से निजात पाने के साथ अपने शहर को स्वक्ष  स्मार्ट शहर बना सकते हैं।आज मेरा शहर आगरा स्मार्ट शहर की दौड़ से काफी पिछड़ गया है ऐसे में लेखक को लगता हैं कि आगरा के नागरिकों के साथ प्रशासन राजनैतिक लोगों के साथ रेल मंत्रालय को अपनी ये मांग रखनी चाहिए कि जो रेलवे की संपत्ति बेकार पड़ी है और उस पर पहले से ही निवेश हो चुका हैं उस पर एक लोकल ट्रैन अगर हम ऐसे चालू करते है टूंडला से जमुना ब्रिज,जमुना ब्रिज से आगरा सिटी ,आगरा सिटी से राजामंडी,बिल्लौचपुरा और आगरा कैंट के लिए चलायें रेलवे की संपत्ति उपयोग के साथ उसे जंग लगने चोरी से भी बचाया जा सकता है।दूसरी ओर मेरा शहर आगरा मॉडल सिटी के रूप में जाम पोल्लुशन,
सस्ती यातायात व्यवस्था ,गंदगी व जनहानि भी रुकेगीअगर आपको मेरा सुझाव ठीक लगता है तो कृपया इसे हर मंच पर अपनी मांग रखें साथ ही रेल मंत्रालय को आगरा के सांसद के साथ रेल मंत्री से मिलकर एक ब्लू प्रिंट तैयार करायें।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

  आरक्षण का दंश अब भारत के लिए एक बहुत बड़ा नासूर बनता जा रहा हैं यह राष्ट्र को जितनी क्षति पंहुचा रहा है और उसकी छवि ख़राब कर रहा है उससे ज़्यादा भारत के आने वाले भविष्य और सपूत जो की अपनी बौद्धिक क्षमता से आपने प्रदेश ही नहीं बल्कि विदेशो में भी सम्पूर्ण राज्य करने का जो उत्साह है, वह उत्साह आत्महत्या में तब्दील होता जा रहा है आज जाट आरक्षण में जो कल राष्ट्र की संपत्ति व जनहानि नागरिको के बीच में भय की स्थिति देश विदेश से आने वाले पर्यटकों का बेहाल होते हुए टीवी पर देखना अखवारों के माध्यम से जानकारी आने के बाद लेखक का मन इतना विचलित हो गया कि वह अपने आपको यह लिखने से रोक नही सका। जो जाट आरक्षण आंदोलन में राष्ट्र की संपत्ति का नुकसान हुआ है उसकी भरपाई एक बार फिर आम जनता को कर अदा करके पूरी करनी पड़ेगी।समझ से परे हो रहा है क्या हम भारतीय शुरू से ऐसे ही थे कि भीख मांग के खाने वाले नरभक्षियों की  तरह आरक्षण की आड़ में जंगल राज पैदा करना देश की संपत्ति के साथ आम पब्लिक  की संपत्ति को नष्ट करना मात्र ये दर्शाता है कि हम राजनैतिक  और देश की वयवस्था को चुनौती दे कर उन्हें मजबूर कर देंगे। अपनी मांगों के प्रति मुझे फिल्म का वो सीन याद आता है जिसमे खलनायक एक चाकू की नोक पर नारी की इज़्ज़त लूटने पर उससे विवश करता है और एक फिल्म में बाप को बच्चे की धमकी देकर उससे नाजायज़ काम कराता है आज जो सरकार की हालत दिखाई दे रही है वो उसी नायका और बच्चे के बाप की तरह दिखाई दे रही है, इधर कुँआ उधर खाई ।कब तक राजनैतिक लोग अपने फायदे के लिए इस तरीके के अव्वल दर्जे के घटिया पैतरे अपना कर राष्ट्र को नुकसान पंहुचाते रहेंगे ।मुझे लगता है कि इन राजनैतिक लोगो को अपने ग्रेह्वान में झांकना चाहिए और अपने परिवार का कोई सदस्य ऐसे  आरक्षण के दंश में फसना चाहिए और आरक्षण के कारण अपनी क़ाबलियत का गला घुटते हुए और आत्महत्या होते हुए देखेंगे, शायद तब ही इन लालचियों का राष्ट्र के प्रति प्रेम जागेगा,हांलाकि राष्ट्र की कई न्यायालयों में आरक्षण जैसे दंश पर अपनी कई महत्वपूर्ण टिप्पड़िया की है। परन्तु भारत का एक बहुत बड़ा बौद्धिक वर्ग क्यों इस विषय पर नही बोलता है ये समझ से परे है जबकि वह ये जानते है कि यह भष्मासुर की आग है, इसमें एक दिन उसे भी जलना पड़ेगा। फिर भी वह अपनी आवाज़ मांग तो किसी प्लेटफॉर्म पर उठा रहा है और ही राजनैतिक दलों को उनकी मनमानी रोकने का प्रयास कर रहा है। दुनिया भर के कार्टून और मैसेज तो हमें मिलते है पर इसको रोकने के लिए कोई ठोस कदम नही  उठा रहे हैं ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है मुझे लगता है की एक बौद्धिक लोगो को इस विषय पर चिंतन करके ठोस कदम उठाना चाहिए और न्यायलयों के माध्यम से राज्य और केंद्र सरकार पर दबाब बनाना चाहिए। हर शहर के विधायक सांसद के साथ न्यायलों से भी मदद लेनी चाहिए। मेरे हिसाब से अब समय गया है कि इस कैंसर रुपी   बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए आवाज़ उठाई जायें। लेखक का मानना है कि आरक्षण केवल इन लोगों को मिलें ।1.   आर्थिक आधार पर हर गरीब को, चाहे वो किसी जाती धर्म का क्यों हो
2.        हर अपंग(दिव्यांग)को 3.        हर अनाथ को 4.        देश के लिए शहीद होने वाले बच्चो को आओ मिलकर इस मुहीम को चलाये और धर्म,जाती के नाम पर बंटते देश को बचाए इससे क्रम को आगे और लिखेंगे।
 

शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

निमंतरण पत्र का जंजाल

विवाह भारतीय सम्भीयता में एक तपस्या व संस्कृति है ये मात्र स्त्री व पुरुष का मिलन ही नहीं बल्कि दो परिवारो के जोड़ने का उत्सव है।ये दो परिवारो के वंश को बढ़ाने की संस्कृति है। आदिकाल में इस पारिवारिक उत्सव को मनाने के लिए समाज के लोगो को एकत्रित किया जाता था,ढोल तमाशे व स्वादिष्ठ पकवान खाकर उसके साझी बनते थे,परन्तु आज वैश्वीकरण में उन परम्पराओ और संस्कृतियो ने अपने रूप बदल लिया है और कई चीज़े जो पहले इसलिए शुरू की गयी थी जिससे समाज में पारिवारिक प्यार बढ़े परन्तु अब समाज में पढ़ने लिखने के साथ साथ आर्थिक संपन्नता बढ़ने से उनके रूप बदलते जा रहे है जिससे ये विवाह का जो उत्सव है उनका अब रूप बदल गया है वही बदलाव व नई व्यवस्थाये  परेशानी के साथ बुराई व विलासिता का सबब भी बनती जा रही है- जैसे निमंतरण पत्र।आज जिस तरह से गाँव शहर बनते जा रहे है और शहर महानगर बनते जा रहे है उनमे महंगे निमंतरण पत्र बाटना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है। निमंतरण पत्रो पर इतने पैसे खर्च  हो रहे है कि  एक गरीब बेटी का कन्यादान हो सकता है।आज के हाई हाई टेक समय में  इस वयवस्था को व्यक्तिगत  निमंतरण के  रूप में मान्यता होनी चाहिए  जैसे  व्हाट्सप्प,ईमेल ,एसएमएस  व डाक वयवस्था से भेजने का प्रावधान होना चाहिए। इसके लिए समाज के लोगो को सहर्ष  स्वीकार करके धन व समय बचाना चाहिए उस धन व समय को परिवार जन के साथ व्यतीत करके पारिवारिक व सामाजिक प्यार व उल्लास से उत्सव मनाना चाहिए सम्पूर्ण समाज को इसके लिए पहल करने के साथ जागरूकता के कार्यक्रम अपने अपने समाज व समितियों व क्लब और व्हाट्सप्प,फेसबुक  और ट्विटर पर चलाने  चाहिए। 

मै लेखक राजीव गुप्ता आपको विश्वास दिलाता हूँ  कि मुझे अगर कोई निमंत्रण फ़ोन पर देगा तो में उससे सहर्ष  स्वीकार करूँगा।