गुरुवार, 3 जनवरी 2013

बलात्कार से बचाव ज्यादा महत्वपूर्ण|

 

बलात्कार : शायद ये हमारे सभ्य समाज का एक सबसे घिनौना अराध ये एक ऐसा अपराध है जो शायद इंसानियत के उसूलों को तार तार करते हुए ये साबित करने के लिए काफी है कि आज क्रम-विकास के हजारों सालों के बाद भी हमारे समाज में जानवर अभी भी मौजूद है |

बलात्कार केवल शारिरिक नहीं बल्कि कभी ना भरने वाला वो मानसिक घाव भी देता है जिसका भरना शायद पूरे जीवन नामुमकिन है  !

 
दिल्ली में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना ने पूरे देश को हिला के रख दिया और जो गुस्सा देखने को मिला वो  अचंभित करने वाला था साथ की उम्मीद भी जगाता दिखा कि अब जनता ये सब देख कर चुप नहीं रहेगी | इन सब प्रदर्शन और हंगामे की बीच पीडिता को इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया.  प्रदर्शन और गुस्सा जायज है लेकिन उसके नाम पर उपद्रव और राजनीति कतई जायज नहीं. 


देश में युवाओं का ऐसा समूह मौजूद है जो अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ को मजबूती के साथ उठाते हैं लेकिन साथ ही एक ऐसा कथित बुद्धिजीवी वर्ग भी है जो हर मुद्दे को मार्केटिंग और राजनीति के चश्मे से देखता है..ये विडंबना शुरू से ही देश झेल रहा है शायद इसलिए ही हम आज भी उन मूलभूत व्यवस्थाओं से वंचित हैं जिनके लिए हम सालों से लड़ते आये हैं. इस प्रदर्शन में भी कई राजनीतिक पार्टियां एवं कुछ नौसिखिए राजनीतिक ग्रुप अपने बैनर और झण्डे लहराते दिखे. उनकी मंशा इन्साफ दिलाने या सुरक्षा दिलाने से ज्यादा राजनीतीक् गलियारों में अपनी मौजूदगी दर्ज करने की थी.
मैं देख रहा हूँ कि आगे आने वाले दस दिनों में भी कई केंडिल मार्च प्लान किये गए हैं. सच में ये चिंताजनक ही है कि एक लड़की जीवन और मौत की लड़ाई से जूझ रही है और दूसरी तरफ लोग प्रार्थना के लिए और अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए भी दिन निश्चित करके, मीडिया रिलीज़ दे रहे हैं. क्या उस लड़की के प्रति हमदर्दी का भाव जताने का ये ही एक मात्र तरीका है???  

हम सब सजा पर ज्यादा गौर कर रहे हैं लेकिन बचाव पर नहीं. उन तौर तरीकों पर नहीं जिसकी वजह से हमारे समाज को रोज ऐसे दंश झेलने पड़ते हैं. फांसी की सजा को लेकर जितना उन्माद देखा जा रहा है उसकी वजह से ऐसे वीभत्स घटनाओं से सुरक्षा एवं इसके बचाव के तरीके परदे के पीछे गुम से होकर रह गए.
कई लोगों का कहना है कि बलात्कार की सजा फांसी हो जायेगी तो इस अपराध पर रोक लग जायेगी लेकिन पहली शताब्दी से ही हत्या और कई अपराधों में लोगों की सरेआम गर्दन तक काट दी जाती थी. ऐसा अभी भी कई देशों में देखने को मिलता है लेकिन गौर करने वाली बात है कि ये अपराध खत्म नहीं हुए हैं. चर्चा का विषय फांसी या सजा तक ही सीमित न रहकर इसके बचाव और सामाजिक मानसिकता में बदलाव होना चाहिए था. 

सुरक्षा की बात पर ज्यादा गौर करने की जरुरत है. इस मामले में सरकार को कई विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए साथ ही न्यूज चैनल पर सजाओं और उन्माद से ज्यादा चर्चा इस विषय पर होनी चाहिए कि आखिर इससे बचा कैसे जाए और इसके लिए जिम्मेदार कौन है?? मेरा मत ये है कि सबसे पहले हमें शुरू से ही घर से ही बच्चों को सिखाना होगा कि नारी का महतव् क्या है और इसका सम्मान कैसे किया जाए. अक्सर कई घरों में नारी घरेलु हिंसा का शिकार होती है जिससे बच्चों की मानसिकता भी नारी के लिए वैसी ही हो जाती है, साथ ही कक्षा आंठवी से ही छात्राओं को अपनी सुरक्षा के लिए मार्शिअल आर्ट्स की अनिवार्य क्लास होनी चाहिए. देर से काम से लौटने वाली महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनज़र सरकार को कोई ठोस कदम उठाने चाहिए जिनमें सूचना तकनीक का इस्तेमाल भी किया जा सकते हैं या कोई ऐसा गेजेट भी बनाया जा सकता है जिससे त्वरित तौर पर पास के ही थाने में खबर की जा सके| जिससे ऐसे मामलों पर लगाम लगाई जा सके 

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