शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

एक्सक्लूसिव की बड़ी होड़ है भाई....

तेजी से पनपते न्यूज चैनलों ने आम आदमी के सामने एक बड़ी दुविधा पैदा कर दी है. चौबीस घंटे के चैनल न जाने किस किस दुनिया में घूमकर अपना मसाला तैयार करते हैं. कभी एलियन भी बात तो कभी ऐसे गृह की बात जो शायद आज तक किसी खगोलविद ने किसी किताब में नहीं देखा. एक्सक्लूसिव की होड़ में सारे चैनल कुछ इस कदर लग गए हैं कि उन्हें अब मीडिया की नैतिकता से कोई लेना देना नहीं. किसी घटना में कोई चैनल ३० लोगों को मृत बताता है तो कोई ५० को और बाद में माफ़ी मांगते हुए दीखते हैं. कोई कोई चैनल तो माफ़ी तक नहीं मांगते :)
एक्सक्लूसिव की ये होड़ कई बार गलत ख़बरें सम्पादित कराती है. कई बार तो भारत के क्रिकेट मैच हारने के बाद न्यूज चैनल पर ऐसी चर्चाएँ होती हैं, खिलाडियों की ऐसी भर्त्सना की जाती है जैसे उन्होंने कोई देशद्रोह कर दिया हो. साथ ही कई बार जल्दबाजी के चक्कर में गलत ख़बरें देखने को मिल ही जाती है, सवाल ये है कि एक्सक्लूसिव ज्यादा जरुरी है या फिर सही खबर?? 

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

नज़र तेरी ख़राब, बुरखा पहने नारी !!!!

पूरा देश इस वक़्त उबल रहा है. दिल्ली में हुए बलात्कार के विरोध में सभी एकजुट हुए है. सड़कों से लेकर इन्टरनेट की दुनिया तक में जबरदस्त प्रदर्शन जारी है. एक तरफ सड़कों पर सरकार के विरोध में पुतले फूंके जा रहे हैं तो फेसबुक पर काली प्रोफाइल पिक लगाकर विरोध दर्ज कराया जा रहा है. लेकिन एक सवाल मन में कौंधता है की आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है?? लड़की के छोटे कपडे??? बिलकुल नहीं... मर्दों की मानसिकता जो आये दिन इस कदर गिरती जा रही है की वो ये भूल जाते हैं उनके घर पर भी औरतें है. वो ये भूल जाते हैं की ये भारत की पवित्र भूमि है जिसके संस्कारों की शक्ति को दुनिया भर में जाना जाता है. पुरुष की मानसिकता इस सब की जिम्मेदार है. पूरे देश में एक अलग सा उबाल है जो सडकों पर केंडिल लाईट मार्च तक सीमित है. लेकिन आन्दोलन्कारिओ की इस भीड़ में ज्यादातर को चेहरा चमकाने की ललक है. वो कविरोध भी तभी जताते हैं जब कैमरे शुरू होते हैं. क्या इस तरह से सुधरेगा समाज?? चार दिन मीडिया भी एक विषय पर चर्चा करता है और एक क्रिकेट मेच होते ही सब भूल जाता है. ऐसे में इस गुस्से का भी क्या फायदा??
इसलिए पहले पुरुष मानसिकता सुधारनी होगी साथ ही ऐसे आरोपिओं के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही भी करनी होगी. 

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

क्या सचमुच फायदा दे पाएगी नकद सब्सिडी??? 

केंद्र सरकार एक और लुभावना वादा लोगों से कर रही है और अब लगभग विभिन्न सब्सिडी सीधे बैंक खाते में आया करेगी. केंद्र सरकार ने २०१३ तक इसे पूरे देश में लागू करने को कहा है. और साथ ही इसे गेम चेंजर योजना भी मान रही है. लेकिन सवाल ये है की इसका फायदा बीपीएल परिवारों को कितना होगा??
देश में वैसे ही बेंकिंग प्रणाली इतनी कठिन होती जा रही है की अगर एक पढ़े लिखे आदमी को भी बैंक में खाता खोलना होता है तो उसे कई फ़ार्म भरने पड़ते हैं और काफी औपचारिकताएं पूरी करनी होती है. और देश में शिक्षा का स्तर तो सभी को पता है. गरीब वर्ग को शिक्षा का अधिकार भी नहीं मिल पा रहा जिसके कारण एक बड़ा तबका शिक्षा से दूर है. तो क्या ऐसे वर्ग के लोग बैंक खाता सहजता से खुलवा पाएंगे?? साथ ही खाता खुलवाने के लिए बैंक गारेंटर की जरुरत पड़ती है तो ये लोग गारेंटर कहाँ से लायेंगे??
कई ऐसे गाँव है जहाँ बैंक काफी दूरी पर स्थित है. ये भी एक बड़ी समस्या है की कुछ पैसों की सब्सिडी के लिए आदमी को कई पैसे किराये भाड़े में खर्च करने पड़ेंगे.
एक गहरा सवाल ये भी पैदा होता है की घर के मुखिया सब्सिडी के पैसे को अनाज में ही खर्च करेंगे इसकी क्या गारंटी है?? अक्सर देखा गया है की परिवार के मुखिया शराब में पैसे उड़ाते हैं और मजबूरन घर की औरतों को झाड़ू पोछा करके गुजर बसर करना पड़ता है.
महंगाई आये दिन बढती रहती है लेकिन सरकार की नकद सब्सिडी फिक्स रहेगी जिससे लोगों को महंगाई का भार ज्यादा झेलना पड़ेगा.
नकद सब्सिडी फायदे से ज्यादा कुछ ऐसी जटिलताएं पैदा करती नज़र आ रही है जो आगे जाकर इस योजना को फ्लाप बना सकती है.

राजीव गुप्ता 

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

उद्योग जगत पर लगाम लगा रहा है प्रदेश में बढ़ता अपराध

हर रोज चाय की चुस्कियां लेते हुए अखबार खोलने से पहले ये दुआ करता हूँ की भगवान् आज तो शहर में शान्ति होगी..लेकिन नहीं, ऐसा होता नहीं है..फिर से पहले पन्ने पर वो ही लूटमार, चोरी डकेती की ख़बरें.. प्रदेश  ऐसा लगता है मानो बारूद की ढेर पर बैठा है और हमारा प्रशासढुलमुल रवैया अपनाकर चिंगारी भड़का रहा है. रविवार की शाम एक और सराफा व्यापारी को गोली मारी गयी. हैरत की बात ये है की गोली मारने की खबर क्षेत्राधिकारी को भी एक पत्रकार से मिली. पुलिस चौकी घटना के समय तो खाली थी ही और अगले आधे घंटे तक भी खाली ही रही. दो दिन पहले ही नए एसएसपी सुभाष चन्द्र दुबे ने चार्ज संभाला था . उनके पुराने काम  की चर्चा पूरा मीडिया कर रहा था. ख़ुशी थी की एक अच्छा और जांबाज अफसर शहर में आया है लेकिन वो शहर को जरा भी समझ पाते की बदमाशों ने अपनी करतूत से सबको खुली चुनौती दे दी. इससे पहले एक, दो एवं बारह दिसंबर को भी अलग अलग सर्राफा व्यापारिओं पर गोली चली थी. पुलिस उसकी ही जांच नहीं कर पायी की तब तक एक और घटना सामने आ गयी.
जनवरी में आगरा ग्लोबल इन्वेस्टर सममित करने जा रहा. लोगों को उम्मीदें हैं की देश विदेश के लोग यहाँ आकर निवेश करेंगे और नए उद्योग लगायेंगे. लेकिन एक गहरा सवाल है की जब शहर के ही व्यापारी दिन रात अपनी जान पर खेल रहे हैं. जो सुबह घर से निकलते हैं तो ये भी नहीं पता होता की रात को सही सलामात पहुंचेंगे भी या नहीं. आखिर उस शहर में कोई बहार से आकर पैसा क्यों लगाएगा??? बढ़ता अपराध निश्चित तौर से शहर के उद्योगपतिओं के पलायन का कारण तो है ही साथ ही बाहर के निवेशकों को भी दूर कर रहा है.. ऐसा ही चलता रहा तो व्यापारिओं को भी अब मजबूरन अँधेरा होने से पहले घर जाना पड़ेगा. जरूरत है जागने की..जगाने की..

राजीव गुप्ता

रविवार, 16 दिसंबर 2012

सेंट जांस कालेज ने पूरे किए 162 साल...पर नहीं कोई धमाल, ये है गहरा सवाल.....

आगरा की धरोहर माना जाने वाला सेंट जांस कालेज आज 162 साल पुराना हो चला..शहर की कई हस्तियाँ इसी की कक्षाओं में बैठकर ज्ञान लिया करती थी और साथ ही इसके प्रांगन में कई लोगों की अनूठी यादें दबी हुई है. आम तौर पर जब कोई बच्चा बड़ा होता है तो हर साल सब मिलकर उस दिन जश्न मनाते हैं, खुशियाँ बांटते हैं और साथ ही उसके भविष्य के बारे में कुछ सोचते हैं.. लेकिन कालेज इतना पुराना हो चला पर कालेज में न पुराने छात्र कहीं मिले, न इस विषय पर चर्चा हुई की कालेज की समस्याओं का निराकरण कैसे हो..कैसे इस अनूठे कालेज को और बेहतर बनाया जाए. वो यादें तो सिर्फ यादें ही रह गयी.. न पुराने मित्रों की मुलाक़ात हुई न ही पुरानी यादें ताजा हुई..सुबह अखबार उठाया तो पहले पन्ने पर ही इसके बारे में पढ़ा और खो गए उन यादों में..सोचा काश हमारी भी गेट टुगेदर होती, काश पुराने दिन ताजा होते..काश नए छात्रों से मिलकर अपना अनुभव बताते, उनका अनुभव सुनते..खैर अपने पास अब ये ही रास्ता है..आइये इन्टरनेट पर ही इसे याद करें..अपना अनुभव साझा करें.