शनिवार, 9 जनवरी 2016

"अब समाजसेवा बनी स्व सेवा"

आजकल दुनियाभर में समाजसेवा नाम कमाने का एक बड़ा जरिया बन गयी है. आज हाल ये है कि  ये समाज से ज्यादा स्व सेवा बन गयी है और छपास के रोगी व फुर्सतिये हर शहर के गली और मोहल्ले में हैं। इस तरह के कामों के लिए कई सव्ंयभु संघटन बन गए है. कई तो ऐसे भी हैं जिनकी कि  हर शहर में ब्रांच हैं और मजे कि बात तो ये है की इन्होने हर महीने में एक दिन फिक्स कर लिया है और उस दिन तमाम एक्टिविटी भी करते हैं और अगले दिन उसका बढ़ चढ़कर गुणगान ही होता है मीडिया में. 



लायंस और रोटरी क्लब समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत \ऐसे संघटन हैं जो कि  दुनिया भर में आदर्श माने जाते हैं. दुनिया के लगभग हर देश में बड़े शहरों में इनकी ब्रांचेज हैं. जिस दौर में इनकी नींव रखी गयी थी तब बड़े तबके के मृदुभाषी लोग आपस में मिल नहीं पाते थे और उस जमाने में गेट टूगेदर जैसा कोई कांसेप्ट भी चलन में नहीं था.

उस दौर में प्रबुद्ध बौद्धिक स्तर वाले लोगों को इस क्लब्स से जोड़ा जाता था.  ये वो लोग थे जो कि  अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज के निचले लोगों को देने के लिए हमेशा तैयार रहता था ठीक वैसे ही जैसे कि आज फेसबुक के जुकरबर्ग और विप्रो के अजीज प्रेमजी. 

इस क्लब्स की ओर से होने वाले प्रोग्राम में वे अपनी ओर से सहयोग राशि जरूर देते थे. ऐसा चलन आज भी है और निचले तबके के लोग भी छोटे मोटे आयोजन के लिए चंदा देते हैं.


भारत जैसे विकासशील देश में भी धीरे धीरे एक बड़ा तबका इस क्लब्स से जुड़ने लगा था. यहाँ के हर बड़े शहर में रोटरी और लायंस क्लब्स की ब्रांच है. 

यहाँ इनसे जुड़ना एक स्टेटस सिंबल के रूप में भी देखा जा रहा है. अब कम्युनिटी सेंटर और दूसरी जगह के बजाय इस क्लब्स के प्रोग्राम पांच सितारा होटल्स में होने लगे हैं. 

इन जगहों पर समाज सेवा काम और पांच सितारा कल्चर पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है और ज्यादा पैसा तड़क-भड़क पर खर्च किया जा रहा है. 

इस फील्ड में हजारों ngo भी हैं. सभी अपनी अपनी गणित से सेवा करने में जुटे हैं गरीब की कम और अपनी ज्यादा. खैर ये एक अलग बहस का मुद्दा है. 

छोटे मोटे क्लब्स और ngo के इन मठाधीशो को ये सोचना चाहिए कि अगर देश के सारे क्लब्स मर्ज हो जाये और एकजुट होकर सही मायने में गरीब की सेवा में पैसा खर्च करें  तो देश में कोई भी गरीब न रहे और भूखा न सोये. 

लेखक का ये मानना है कि  कई क्लब्स को २ बातों पर गौर करना चाहिए कि  वो पैसे का दुरूपयोग न करें और मीटिंग्स में जो पैसा जलपान में खर्च होता है उसे गरीब की सेवा में खर्च करें। वहीँ बड़े क्लब्स में पोजीशन पाने के लिए जो पैसा खर्च किया जाता है उसे गरीब के घर में ख़ुशी लाने के लिए खर्च करना चाहिए।

इस ब्लॉग पर आप अपने कमेंट्स दीजिये। आपकी राय को इस शहर और देश के लोगों के साथ साझा किया जाएगा. आपके विचारों का स्वागत है.

















शनिवार, 2 जनवरी 2016

प्रदूषणरहित दुनिया का लें संकल्प


साल 2015  बीत चुका है और परसों तक अपना सा और करीब लगने वाला ये साल अब इतिहास की किताब का एक अध्याय बन चूका है. 

यादों, किस्सों, कहानियों, ठहाकों, और बकैती (बक-बक) के ढेर सारे लम्हों को अपने साथ सहेज कर ले गया है ठीक वैसे ही जैसे कि एक साल पहले साल 2014. पुराने साल मैं बदल चूका ये साल 2015 को हमने जश्न के साथ विदाई दी और अख़बारों में विघ्यपानो, होर्डिंग्स, SMS और व्हाटसप के जरिये हमने इस दो दिन पुराने साल 2016 का इस्तकबाल किया है. ठीक पिछले साल की ही तरह भव्य आतिशबाजी, हजारों वाट के म्यूजिक सिस्टम से निकलती धुनों, मदिरापान के साथ होटलों और clubs में गलबहियां करते युवा, किशोर और बच्चों के साथ दूसरे आयुवर्ग के संपन्न तबके ने  अंग्रेजीदां तौर-तरीके से नए साल को वेलकम किया, लेकिन इस सबके के बीच इस तबके ने एक बहुत जरुरी चीज को पीछे छोड़ दिया और वो है पर्यावरण प्रदुषण. 


पर्यावरण के बढ़ते खतरों और घट रहे वनों के खतरों से अनजान इस तबके ने जमकर ध्वनि प्रदुषण किया, जो कि एक हद तक रोका जा सकता था 

आइये हम संकल्प ले कि ना केवल पूरे साल बल्कि जीवन भर किसी भी तरह का प्रदुषण न करेंगे और न होने देंगे क्योंकि भगत सिंह, और चंद्रशेखर आज़ाद सरीखे क्रांतिकारियों के बुते ही देश ने आज़ादी पायी। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर शहीद भगत सिंह भी ये सोचते कि  क्रांति की मशाल   पडोसी का बेटा ही जलाएगा तो यकीं मानिए कि शायद हम आज भी ग़ुलाम होते. 

तो दोस्तों आज वक़्त है खुद के बदलने का क्योंकि जब आज साल नया संकल्प नया तो दुर्गुण वही पुराने क्यों. हमें आलस्य को छोड़ना होगा और ये संकल्प लेना होगा कि  साल में दो पोधे लगाएंगे, कभी हॉर्न नहीं बजायेंगे तभी हम इस माटी को कुछ लौटा पाएंगे. 

इस ब्लॉग पर आप अपने कमेंट्स दीजिये। आपकी राय को इस शहर और देश के लोगों के साथ साझा किया जाएगा. आपके विचारों का स्वागत है.