साल 2015 बीत चुका है और परसों तक अपना सा और करीब लगने वाला ये साल अब इतिहास की किताब का एक अध्याय बन चूका है.
यादों, किस्सों, कहानियों, ठहाकों, और बकैती (बक-बक) के ढेर सारे लम्हों को अपने साथ सहेज कर ले गया है ठीक वैसे ही जैसे कि एक साल पहले साल 2014. पुराने साल मैं बदल चूका ये साल 2015 को हमने जश्न के साथ विदाई दी और अख़बारों में विघ्यपानो, होर्डिंग्स, SMS और व्हाटसप के जरिये हमने इस दो दिन पुराने साल 2016 का इस्तकबाल किया है. ठीक पिछले साल की ही तरह भव्य आतिशबाजी, हजारों वाट के म्यूजिक सिस्टम से निकलती धुनों, मदिरापान के साथ होटलों और clubs में गलबहियां करते युवा, किशोर और बच्चों के साथ दूसरे आयुवर्ग के संपन्न तबके ने अंग्रेजीदां तौर-तरीके से नए साल को वेलकम किया, लेकिन इस सबके के बीच इस तबके ने एक बहुत जरुरी चीज को पीछे छोड़ दिया और वो है पर्यावरण प्रदुषण.
पर्यावरण के बढ़ते खतरों और घट रहे वनों के खतरों से अनजान इस तबके ने जमकर ध्वनि प्रदुषण किया, जो कि एक हद तक रोका जा सकता था
आइये हम संकल्प ले कि ना केवल पूरे साल बल्कि जीवन भर किसी भी तरह का प्रदुषण न करेंगे और न होने देंगे क्योंकि भगत सिंह, और चंद्रशेखर आज़ाद सरीखे क्रांतिकारियों के बुते ही देश ने आज़ादी पायी। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर शहीद भगत सिंह भी ये सोचते कि क्रांति की मशाल पडोसी का बेटा ही जलाएगा तो यकीं मानिए कि शायद हम आज भी ग़ुलाम होते.
तो दोस्तों आज वक़्त है खुद के बदलने का क्योंकि जब आज साल नया संकल्प नया तो दुर्गुण वही पुराने क्यों. हमें आलस्य को छोड़ना होगा और ये संकल्प लेना होगा कि साल में दो पोधे लगाएंगे, कभी हॉर्न नहीं बजायेंगे तभी हम इस माटी को कुछ लौटा पाएंगे.
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