आजकल दुनियाभर में समाजसेवा नाम कमाने का एक बड़ा जरिया बन गयी है. आज हाल ये है कि ये समाज से ज्यादा स्व सेवा बन गयी है और छपास के रोगी व फुर्सतिये हर शहर के गली और मोहल्ले में हैं। इस तरह के कामों के लिए कई सव्ंयभु संघटन बन गए है. कई तो ऐसे भी हैं जिनकी कि हर शहर में ब्रांच हैं और मजे कि बात तो ये है की इन्होने हर महीने में एक दिन फिक्स कर लिया है और उस दिन तमाम एक्टिविटी भी करते हैं और अगले दिन उसका बढ़ चढ़कर गुणगान ही होता है मीडिया में.
लायंस और रोटरी क्लब समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत \ऐसे संघटन हैं जो कि दुनिया भर में आदर्श माने जाते हैं. दुनिया के लगभग हर देश में बड़े शहरों में इनकी ब्रांचेज हैं. जिस दौर में इनकी नींव रखी गयी थी तब बड़े तबके के मृदुभाषी लोग आपस में मिल नहीं पाते थे और उस जमाने में गेट टूगेदर जैसा कोई कांसेप्ट भी चलन में नहीं था.
उस दौर में प्रबुद्ध बौद्धिक स्तर वाले लोगों को इस क्लब्स से जोड़ा जाता था. ये वो लोग थे जो कि अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज के निचले लोगों को देने के लिए हमेशा तैयार रहता था ठीक वैसे ही जैसे कि आज फेसबुक के जुकरबर्ग और विप्रो के अजीज प्रेमजी.
इस क्लब्स की ओर से होने वाले प्रोग्राम में वे अपनी ओर से सहयोग राशि जरूर देते थे. ऐसा चलन आज भी है और निचले तबके के लोग भी छोटे मोटे आयोजन के लिए चंदा देते हैं.
भारत जैसे विकासशील देश में भी धीरे धीरे एक बड़ा तबका इस क्लब्स से जुड़ने लगा था. यहाँ के हर बड़े शहर में रोटरी और लायंस क्लब्स की ब्रांच है.
यहाँ इनसे जुड़ना एक स्टेटस सिंबल के रूप में भी देखा जा रहा है. अब कम्युनिटी सेंटर और दूसरी जगह के बजाय इस क्लब्स के प्रोग्राम पांच सितारा होटल्स में होने लगे हैं.
इन जगहों पर समाज सेवा काम और पांच सितारा कल्चर पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है और ज्यादा पैसा तड़क-भड़क पर खर्च किया जा रहा है.
इस फील्ड में हजारों ngo भी हैं. सभी अपनी अपनी गणित से सेवा करने में जुटे हैं गरीब की कम और अपनी ज्यादा. खैर ये एक अलग बहस का मुद्दा है.
छोटे मोटे क्लब्स और ngo के इन मठाधीशो को ये सोचना चाहिए कि अगर देश के सारे क्लब्स मर्ज हो जाये और एकजुट होकर सही मायने में गरीब की सेवा में पैसा खर्च करें तो देश में कोई भी गरीब न रहे और भूखा न सोये.
लेखक का ये मानना है कि कई क्लब्स को २ बातों पर गौर करना चाहिए कि वो पैसे का दुरूपयोग न करें और मीटिंग्स में जो पैसा जलपान में खर्च होता है उसे गरीब की सेवा में खर्च करें। वहीँ बड़े क्लब्स में पोजीशन पाने के लिए जो पैसा खर्च किया जाता है उसे गरीब के घर में ख़ुशी लाने के लिए खर्च करना चाहिए।
इस ब्लॉग पर आप अपने कमेंट्स दीजिये। आपकी राय को इस शहर और देश के लोगों के साथ साझा किया जाएगा. आपके विचारों का स्वागत है.
लायंस और रोटरी क्लब समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत \ऐसे संघटन हैं जो कि दुनिया भर में आदर्श माने जाते हैं. दुनिया के लगभग हर देश में बड़े शहरों में इनकी ब्रांचेज हैं. जिस दौर में इनकी नींव रखी गयी थी तब बड़े तबके के मृदुभाषी लोग आपस में मिल नहीं पाते थे और उस जमाने में गेट टूगेदर जैसा कोई कांसेप्ट भी चलन में नहीं था.
उस दौर में प्रबुद्ध बौद्धिक स्तर वाले लोगों को इस क्लब्स से जोड़ा जाता था. ये वो लोग थे जो कि अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज के निचले लोगों को देने के लिए हमेशा तैयार रहता था ठीक वैसे ही जैसे कि आज फेसबुक के जुकरबर्ग और विप्रो के अजीज प्रेमजी.
इस क्लब्स की ओर से होने वाले प्रोग्राम में वे अपनी ओर से सहयोग राशि जरूर देते थे. ऐसा चलन आज भी है और निचले तबके के लोग भी छोटे मोटे आयोजन के लिए चंदा देते हैं.
भारत जैसे विकासशील देश में भी धीरे धीरे एक बड़ा तबका इस क्लब्स से जुड़ने लगा था. यहाँ के हर बड़े शहर में रोटरी और लायंस क्लब्स की ब्रांच है.
यहाँ इनसे जुड़ना एक स्टेटस सिंबल के रूप में भी देखा जा रहा है. अब कम्युनिटी सेंटर और दूसरी जगह के बजाय इस क्लब्स के प्रोग्राम पांच सितारा होटल्स में होने लगे हैं.
इन जगहों पर समाज सेवा काम और पांच सितारा कल्चर पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है और ज्यादा पैसा तड़क-भड़क पर खर्च किया जा रहा है.
इस फील्ड में हजारों ngo भी हैं. सभी अपनी अपनी गणित से सेवा करने में जुटे हैं गरीब की कम और अपनी ज्यादा. खैर ये एक अलग बहस का मुद्दा है.
छोटे मोटे क्लब्स और ngo के इन मठाधीशो को ये सोचना चाहिए कि अगर देश के सारे क्लब्स मर्ज हो जाये और एकजुट होकर सही मायने में गरीब की सेवा में पैसा खर्च करें तो देश में कोई भी गरीब न रहे और भूखा न सोये.
लेखक का ये मानना है कि कई क्लब्स को २ बातों पर गौर करना चाहिए कि वो पैसे का दुरूपयोग न करें और मीटिंग्स में जो पैसा जलपान में खर्च होता है उसे गरीब की सेवा में खर्च करें। वहीँ बड़े क्लब्स में पोजीशन पाने के लिए जो पैसा खर्च किया जाता है उसे गरीब के घर में ख़ुशी लाने के लिए खर्च करना चाहिए।
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