दिनांक:20/06/2016
योग का अर्थ
जोड, जोड का अर्थ
सबल होना,ज़्यादा
होना, सदियों से
हम भारतियों के जीवन का योग
हिस्सा थी।हमारी
जीवन शैली भी
इस प्रकार थी
सुबह सोकर उठने
से लेकर रात
सोने तक
हर श्रण हम शारीरिक
क्रिया इस प्रकार
करते थे वो
अपने आप योग
होता था।जैसे
सुबह उठकर धरती माँ व अपने
बुज़ुर्गों के चरण
स्पर्श करना,उकड़ू
बैठ कर दातून
करना वो भी
पेड़ से तोड़कर,जंगल जाना लोटा पकड़कर, नहाना कुए से
पानी लाकर,सभी
क्रिया पर ध्यान
दे तो स्वयं
समझ आ जायेगा कि अपने दादा,बाबा क्यों
स्वस्थ थे और
योग का क्या
महत्व है।अंग्रेज़ों ने और
इन चलचित्रों(सिनेमा)
ने हमें अपनी
जीवन शैली से
भटका दिया और
अच्छाई से बुरी
जीवन शैली पर
चले गये जिसके
परिणाम स्वरूप आज न
केवल शारीरिक बल खो
रहे है अपितु
सोचने, समझने,सहनशक्ति खो चुके
है।बात- बात पर
गुस्सा करते है
और डॉक्टर के
पास जाना पड़ता
है आज किसी
डॉक्टर के पास
चले जाओ वो
आपको जीवन शैली
सुधारने की सलाह यह
कहते हुए देता
है मेरी दवा
का रोल आपकी
इच्छा शक्ति और
जीवन शैली के परिवर्तन
से आप जल्द स्वस्थ
हो पायेंगे।आज इस
योग विघा को जो
केवल भारत वर्ष
की थी 5000
वर्ष पुरानी उसे
हमें हनुमान जी
की शक्ति की
तरह याद करना
पड़ रहा है
और उसे याद
दिलाने के लिए
फिर पश्चिम के
तरीके व टी.बी.
का सहारा लेना
पड़ रहा है।कल 21-06-2016 को
योग दिवस के
रूप में बना
रहें है ।पश्चिम
छोड़ो भारतीय कम्पनियों
का भी योग
के नाम पर
अरबों का व्यापार
चल रहा हैं
जैसे - योगा मैट
(पहले दरी पर
हो जाता था
)योगा कपडे,बुक,योगा कैसिट,सी.डी.आदि का व्यापार दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है
साथ ही इन
व्यापार में रोज़गार
भी दिया। आप जानते
है कुछ बाबाओं
ने तो अपने
व्यापार का सम्राज्य
खड़ा कर लिया
है साथ ही
वो राजनीती में
भी दखल- अंदाज़
करने लगें हैं
योग के साथ
योग टीचरों की
भी फौज खड़ी
हो गयी है
अब तो कई विश्वविघालय
में योगा पाठ्यक्रम सम्मिलित कर
लिया गया है
योगा में भी
विभिन्न योग
के पाठ्यक्रम
में पढ़ाया जा
रहा है जैसे
जीवन जीने का
(लाइफ ऑफ़ स्टाइल
)योग,शारीरिक क्रिया
का योग, रहन-
सहन(पोशचर) का
योग, मस्तिष्क का योग,हड्डी का योग
(फिजोधेरिप्य) आदि आदि।योग
की महिमा इतनी
बढ़ गई है
कि अब लोग
अपने पुराने धंदे
छोड़ कर योग
गुरु बन रहें
है और बाबाओं
की तरह अपनी
योग की किताबें
व योग का
सामान बेच रहें
है और तो
और इस काम
में पोलिटिकल पार्टियां
और हमारे अख़बार भी इस
योग को भुनाने
में कोई कसर
नहीं छोड़ रहें
हैं।इस साल
योग टीचरों की
कल बहुत कमी
महसूस हो रही
है।आशा नहीं
पूर्ण विश्वास है
अगले साल योग
टीचरों की कमी
नहीं रहेंगी अगर
हम विलासता छोड़
कर भारतीय संस्कृति
और सभ्यता को
अपना लेंगे तो।कल योग दिवस
पर देखते है
योग कितना होगा
और उसका जोड़
कितना होगा हम
केवल दिखावे के
लिए काम करते
है न की
अपनी संतुष्टि के
लिए। योग दिवस
ज़रूर मनायें पर
अपने साथ अपने
बच्चों को इस
तरह के दिन
चर्या सिखाएं कि
वो दिखावे के
लिए या योग
करने के लिए
मजबूर न हो।सभी
के स्वस्थ जीवन
और खुशहाल जीवन
के लिए लेखक
कामना करते है।

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