हाल ही हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला था. बेहतर शासन और भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण के इरादे के साथ गुजरात के तत्कालीन CM नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. तब बहुत आस जगी थी कि वे देश में कुछ नया करेंगे. उन्होंने elecations से पहले देशभर में आयोजित रैलियों में जो जोशीले भाषण दिए थे तब ये लगता था कि वे देश को भ्रष्टाचार रूपी दानव से मुक्ति दिलाएंगे.
शायद युवाओं के एक बड़े तबके ने मोदी को विकास के नाम पर ही वोट दिया था. यह वो तबका है जो कि भ्रष्टाचार और सरकारी तंत्र में व्याप्त लालफीताशाही से बेहद नाराज था. उसे डिग्री पाने, बेहतर नौकरी, और आरामदायक जिंदगी जीने के लिए काफी कष्टों से गुजरना पड़ता था.
केंद्र सरकार के करीब डेढ़ साल के शासन के बाद ये बड़े ही दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि उनके इस ईमानदारी वाले रवैये से देश के उन युवाओं को कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि हाल ही में जो उनकी स्मार्ट सिटी से रिलेटेड जो पालिसी आई है, उसे लेकर अब युवा भी खुलकर विरोध में आ गए हैं कि PM ने सरकारी कर्मचारियों को बेईमानी का एक और मौका दे दिया.
आज डॉक्टर, इंजीनियर सहित अन्य बुद्धिजीवी वर्ग का ये मानना है कि सरकारी कर्मचारी यदि पुरे 8 घंटे ईमानदारी से काम करे तो सरकार से जो रकम जिस पेटे के मद में आती है, उसे पूरी ईमानदारी से खर्च करे तो दो साल में हमारा शहर ही नहीं, समूचा देश ही स्मार्ट सिटी बन जायेगा.
लगता है कि आरक्षण के दंश का खामियाजा युवाओं को ही भुगतना पड़ रहा है. इसके चलते नाकाबिल आदमी भी चपरासी से लेकर मंत्री की कुर्सी पर बैठा है.
लगता है कि स्मार्ट सिटी ही फ्यूचर में उस दंश को झेलेगी, जो शहर सही और सच्चे रूप में हमारे स्मार्ट सिटी के रूप में पहचाने जाने चाहिए ताकि दुनिआ में भारत की छवि एक विकासशील देश की बननी चाहिए, ऐसा नहीं हो पायेगा. इसलिए लेखक का ये मानना है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को पीएमओ से ऑपरेट होना चाहिए. इसके लिए जो शहर चुने जाने थे उन प्रोजेक्ट की मॉनीटिरिंग के लिए एक स्ट्रांग मॉनिटरिंग कमिटी बननी चाहिए थी. इसमें यदि कोई पैसे या पद का दुरुपयोग करता पाया जाये तो उसे म्रतियुदंड का प्रावधान किया जाना चाहिए. ऐसा होने पर ही हम सुनहरे भविष्य की कामना कर सकते हैं.
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