शनिवार, 4 जनवरी 2014

आँधियों में चिराग जलाने के जज्बे से बदलें देश को



15 अगस्त, 47 की उजली सुबह, उम्मीदों की सुनहली धूप के साथ निकली तो देश ने 250 साल की गुलामी के बाद पहली बार आजादी की सांस ली। हमारे तत्कालीन नीति नियंताओं और कर्ता-धर्ताओं के साथ ही तमाम देशवासियों ने संकल्प लिया था, देश को आगे बढ़ाने और तरक्की के आसमान पर ले जाने का। बंटवारे का जख्म सहने के बावजूद देश में सुशासन, खुशहाली, शिक्षित समाज की स्थापना का प्रण। हमें आजाद हुए साल दर साल बीतते गए और आज हमें आजाद हुए 66 साल से भी ज्यादा का समय हो गया। इतने सालों में देश ने तरक्की तो की, लेकिन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, निरक्षरता, कन्या भ्रूण हत्या, अपराध, महिला अपराध, महंगाई भी तरक्की के पहिए में घुन की तरह चिपक गए और उसे खोखला करने लगे। अब फिर कैलेंडर बदला है और इसके साथ ही बदला है साल। साल 2013 के 365 दिन तमाम अच्छी बुरी यादों के साथ गुजरे। हर बार की तरह इस बार भी हमने नए साल के लिए कुछ रेजोल्यूशन लिए हैं। देश, समाज, परिवार और खुद की तरक्की के लिए। इस बार जरूरत ऐसी मजबूत इच्छाशक्ति की है, जिद को जुनून में बदलने और आंधियों में भी चिराग जलाने के हौसले जैसी। ऐसा इसलिए क्योंकि देश के सिस्टम में लगे भ्रष्टाचार सहित तमाम तरह के दीमक को मिटाने के लिए देश को एक नहीं, लाखों अरविंद केजरीवाल सरीखे लोगों की जरूरत होगी। ऐसा तब ही हो पाएगा कि जब हम यह ठान लें कि अपने आसपास के सिस्टम को सुधारने के बाद ही हम चैन से बैठेंगे। ऐसा तभी होगा कि जब हम किसी काम को टालने या कल पर छोड़ने के बजाए उसे पूरा करने की ठान लें। तो इस साल हम प्रण करें कि साल के शुरुआती दिनों के साथ ही पूरे साल रेजोल्यूशन लेने की बात याद रखेंगे और अपने आसपास कोई गलत काम नहीं होने देंगे।

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