शनिवार, 4 जनवरी 2014

आओ भारत को फिर से दुनिया का शीर्ष देश बनायें

नए साल के पहले दिन की शुरुआत आराध्य के दर्शन के संग की। इष्टदेव के ध्यान और पूजा के बाद कारोबार की शुरुआत की। इस दिन शहर के मंदिरों का नजारा और दिनों से अलग था। पुराने शहर के साथ ही शहरभर के कई मंदिरों में लोगों ने पहले अपने भगवान के ढोक लगाई। यह दृश्य वाकई सुखद अनुभूति देने वाला रहा, लगा कि हम अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। आजादी के बाद से हम लोग भारतीयता छोड़कर पाश्चात्य के रंग में रंगने लगे। भारतीय त्योहारों के बजाए पश्चिम देशों के त्योहार प्रमुखता से मनाने लगे। वैदिक कालीन संस्कृति को भूल पश्चिमी देशों की फास्ट कल्चर को अपने जीवन में ढालने लगे। धोती-कुर्ता की जगह पेंट-कमीज, मिठाई की जगह कुकीज ने ले ली। रहन-सहन और जीवन के हर पहलू में विदेशी संस्कृति की छाप दिन प्रतिदिन गहराती गई। स्थिति ये हो गई कि हम लोग हिन्दू नववर्ष को ही भूला बैठे। लेकिन हाल के सालों में कुछ हिंदूवादी संगठनों और लोगों ने इस दिन को भी हिंदू नए साल की तर्ज पर मनाना शुरू कर दिया है। यह अच्छा संकेत है, साथ ही ये भी कि जश्न आदि के अलावा लोग अंग्रेजी साल के पहले दिन कुछ समय अपने भगवान के साथ बिताना चाहते हैं, उनसे आशीर्वाद लेने। ये हाल केवल मेरे शहर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उस दिन दूसरे शहरों में रह रहे रिश्तेदारों, परिचितों और मित्रों से जो समाचार और जानकारी मिली, उसने भी इस बात की तस्दीक कि वाकई देश बदल रहा है, बदल रही है लोगों की सोच। हम अपनी संस्कृति को पहचान रहे हैं, उसे मान रहे हैं। ऐसा हुआ तो यकीनन वापस से हमें दुनिया में अपनी पताका फहराने में देर नहीं लगेगी।


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