रविवार, 15 सितंबर 2013

अतुल्य भारत कब बनेगा अखंड भारत


कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है। पहले मुगल शासकों ने हिंदू राजाओं का कत्लेआम कर उनके राज्यों पर कब्ज़ा कर लिया। ऐसा करके उन्होंने देश में आपसी वैमनस्यता के बीज बो दिए। उनके बाद आए अंग्रेजों ने भी किसी ना किसी तरह से फूट डालकर देश पर राज किया। सैकड़ों सालों की गुलामी के बाद हमारे पूर्वजों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आजाद कराकर ऐसे प्यारे भारत की कल्पना की, कि जिसमें सौहार्द व आपसी तथा सर्वधर्म सम्मान का वातावरण तैयार किया, लेकिन आज सभी राजनीतिक लोग और कुछ ऐसे तत्व जो राज्य और देश में अशांति पैदा करने के लिए काम करते हैं, जिनके बदले उन्हें एक मोटी रकम मिलती है।
यहां ये प्रश्न उठता है कि ऐसे लोगों का दुष्कर्म उस राज्य और देश को पीछे छोड़ देता है। विकास की राह में, लेकिन आम जनता को व उसके परिवार को ऐसा जख्म दे जाता है, जो कि उसकी सात पुश्ते ना तो भूल पाती हैं और ना ही उबर पाती हैं। आम आदमी चाहे वो किसी धर्म, जाति का हो किसी भी राज्य का रहने वाला हो। जो आदमी अपने काम में मशरूफ रहकर दो जून की रोटी जुटाने में लगा रहता है उसका एक तो ये धर्म होता है और वो है कर्म। आज बहुत सारे प्रोफेशन और ऐसे कार्य हैं, जिसमें उस कार्य को पूरा करने के लिए एक पक्ष, एक समुदाय और दूसरे पक्ष व दूसरे समुदाय से है। परंतु कभी वो इस तरीके के झगड़े व विवाद में पड़ता हुआ दिखा है। इससे साफ जाहिर होता है कि चंद लोग अपने लाभ के लिए सिर्फ रोजगार या अन्य लोगों को अपने प्रभाव में ले लेते हैं कि वो आम आदमी उसके परिणाम से अपरिचित होकर उन लोगों की हाथों की कठपुतली बन जाता है और वैमनस्यता फैलाने के लिए जान की बाजी लगा देता है। आप चाहें वो धर्म के नाम पर या अन्याय हो (धार्मिक लोग या धर्माचार्य या सांप्रदायिक तनाव)। आज किसी भी घटना को सांप्रदायिक तनाव का रूप दे देते हैं और लाखों को दो जून की रोटी पाने के लिए मोहताज कर देते हैं। पिछली घटनाओं को अगर आप देखें तो सभी में आपको यही मिलेगा कि बच्चे आपस में खेल रहे थे और मोहल्लों में सांप्रदायिक दंगा हो गया। कहीं लाउडस्पीकर तेज बज रहा था तो उसके रोकने के लिए कहा गया और इस घटना ने सांप्रदायिक तनाव का रूप ले लिया। पिछले दस सालों मे प्रदेश में जिस तरीके से दंगे भड़क रहे हैं उससे आपसी खाई प्रतिदिन गहराती चली जा रही है। आप पिछले डेढ़ साल में अपने ही राज्य में 10-12 घटनाएं घटित होते देख चुके हैं। इससे राज्य सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल खड़ा हो गया है। यहां सोचने का प्रश्न ये है कि हमारी सरकार ने इन घटनाओं को रोकने के लिए कभी ठोस कदम उठाए ही नहीं। हमारे यहां की एलआईयू कहां सोई रहती है घटना होने के पहले। घटना के बाद तो सारे राजनीतिक दल खुद को चमकाने के लिए जहर उगलने में लगे रहते हैं, जबकि कोई भी आवाम ऐसी कोई मांग नहीं करती है, ना ही ऐसा कोई कार्य करती है, जिससे कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति हो। कोई भी पार्टी या सरकार अथवा प्रशासन और उस शहर की जनता इस बात को ना तो उठाती है और ना ही ध्यान देती है। प्रदेश में इतनी बड़ी तादाद में अवैध हथियारों का जखीरा रातों-रात कहां से आ जाता है और रातों-रात ही वो गायब भी हो जाता है।
आनन-फानन में प्रशासनिक अधिकारी को ट्रांसफर करने की जो प्रथा है उससे इस घटना को प्रशासनिक दोष कहकर जनता को गुमराह किया जाता है और नए अधिकारी को भेजकर अपने आप को राजनीतिक वोट देने वालों को ये बताने का प्रयास किया जाता है कि देखो हम आपके साथ हैं। हमारा ब्रजमंडल भी ऐसी घटनाओं से अछूता नहीं है। हाल में न्यूजपेपर्स में आगरा में भी इस तरीके की कई घटनाओं को सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश की गई, लेकिन आगरा की जनता व प्रशासन की तत्परता से उन घटनाओं पर समय रहते रोक लग गई, लेकिन राज्य सरकार ने अफसरों का ट्रांसफर करके लोगों में ये संदेश दिया कि हम आपके साथ हैं।
मेरे एक कोसी के व्यवसायी मित्र ने कहा कि आज भी हमारे यहां बाजार सुचारू रूप से चालू नहीं हैं और व्यापार का पलायन हरियाणा व राजस्थान जैसे पड़ोसी राज्यों में हो रहा है। रोजमर्रा के खाने-कमाने वाले लोगों के लिए काफी दयनीय स्थिति है। हाल ही मुजफ्फर दंगों के बाद प्रमुख न्यूजपेपर के पहले पेज पर एक लड़की का फोटो छपा है। उसके नीचे लिखा है कि मेरा कसूर क्या है। मेरे जेहन में एक बात उठती है कि बेटा इसमें तेरा या मेरा नहीं है। हमारा कसूर सिर्फ इतना है कि हम आम आदमी हैं। आम आदमी होते हुए भी हम दो जून की रोटी भी चैन से नहीं खा सकते हैं। ये घटना तो उन चंद लोगों की कारगुजारी का कसूर है कि जो हमें घाव देते हैं। उसका हमें व हमारी आने वाली पीढ़ियों को दर्द झेलना होगा। उस लड़की की बात दिल को छूते हुए ये विचार सोचने पर मजबूर कर देती है कि आम आदमी जो देर शाम तक अपनी रोटी कमाने की जुगत में लगा रहता है। उसका कसूर क्या है और उसे कब तक इस नई समस्या से मुक्ति मिलेगी और कब हमारा अतुल्य भारत अखंड भारत बन पाएगा।

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