मंगलवार, 3 सितंबर 2013

कारोबारी संत

पिछले 10-15 दिनों से आसाराम जी को लेकर अखबार व इलेक्ट्रॉनिक चैनल 24 घंटे खबरें व विशेष पैकेज चला रहे हैं। उनको जेल भेजे जाने के बाद आज कोई भी जगह या क्षेत्र अछूता नहीं रह गया है कि जहां उन्हें लेकर चर्चाएं ना हो रही हों। चाहे वो स्कूल, मॉर्निंग वॉक, क्लब हो या मंदिर में धर्म का कार्यक्रम।  उम्र का भी कोई सरोकार नहीं है। 15 से लेकर 80 साल के बुजुर्ग भी उनके बारे में बात कर रहे हैं और मान रहे हैं कि अगर वो दोषी हैं तो उन्हें सजा मिलनी चाहिए।
इस पूरे घटनाक्रम में तीन बातें मुख्य हैं। 1. क्या आसाराम इस उम्र में सेक्स करने में सक्षम हैं। 2. सभी बाबा इंडस्ट्री से जुड़े लोगों बाबाओं का यही हाल है और 3.बाबा व धर्म के नाम पर लोगों को लूट रहे लोगों ने देश के धन्नासेठ व टायकून कहे जाने वाले टाटा-बिड़ला जैसे कारोबारियों को भी पछाड़ दिया है। मैंने भी इस पर गौर फरमाया और पाया कि वास्तव में तीनों चीजें काफी चिंतनीय हैं। व्यापारी वर्ग से नाता रखने के नाते सबसे पहले मैंने इनके कारोबार और वैभव पर चिंतन करना शुरू किया। जब आंख व दिमाग दौड़ाया तो पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई और टाटा-बिड़ला जैसा कोई भी नामी उद्योगपति इन बाबाओं के आगे बौना नजर आने लगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इन बाबाओं का कारोबार ‘हरद लगे ना फिटकरी और रंग चोखा ही चोखा’ की तर्ज पर दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। आप भी गौर फरमाइए कि मैं उद्योगपति और बाबा इंडस्ट्री की जो तुलना कर रहा हूं अगर आपको सही लगे तो आप अपने विचार अवश्य इस बारे में बाताएं। व्यापार या उद्योग छोटा हो अथवा बाड़ा, किसी को भी करने के लिए सूद पर पैसा लेना होता है। इन बाबाओं के पास तो बिना ब्याज का पैसा आता है और उसे लगाने के लिए चाहे 10 गुणा 10 की दुकान खरीदने या 3 बीघे का फैक्ट्री का प्लॉट खरीदना हो। इनके पास तो कब्जाई  हुई हजारों बीघा जमीन होती है। फैक्ट्री में शेड डालने के लिए जहां व्यवसायी को अपनी जमा-पूंजी निकालनी होती है। वहीं बाबा व चतुर संत व्यापारी वर्ग को भ्रमजाल में फांसकर उनके खून-पसीने की गाढ़ी कमाई से अपने वैभव और विलासिता का भवन खड़ा कर लेता है। एक व्यापारी अपना माल बेचने के लिए तरह-तरह के जतन के साथ ही यार-दोस्तों से खरीदने की मनुहार करता है। वहीं वह ग्राहक की ठोड़ी पर हाथ डालता है और संत बाबा कारोबारियों का माल तो उनके भक्त खुद ही दुकान सजाकर बेचते हैं। उनके व्यवसाय में ना तो कांस्टेबल डंडा करता है और ना छुटभैये नेता चौथ वसूलते हैं, जबकि उल्टे चौथ वसूलने वाले ही इन संतों को चौथ और काले धन का पैसा दे जाते हैं। व्यापारी पर लगने वाले दर्जनों डिपार्टमेंट जैसे व्यापार कर, इनकम टैक्स, उत्पाद शुल्क, फूड एंड सप्लाई मैनेजमेंट, निगम आदि सहित जो तमाम डिपार्टमेंट हैं, ना तो इन संतों को छूते हैं और ना ही इन विभागों को दिया जाने वाला टैक्स बाबा जमा कराते हैं। दरअसल, ये सारे टैक्स तो इन संतों के नेट प्रॉफिट में जुड़ता है और जो काम पूरा होने पर विभागों में रिश्वत देनी होती है वो इन संतों का महा प्रोफिट होता है, क्योंकि इससे उनका दूर-दूर तलक कोई वास्ता ही नहीं होता। ऐसा कौनसा बाबा है जो कि आज अपना व्यापार नहीं चला रहा हो। अभी तक के इनके प्रमुख व्यापार सौंदर्य प्रसाधन, आयुर्वेदिक दवाइयां, स्कूल-कॉलेज, रिसर्च सेंटर, धार्मिक व प्रवचनों की सीडी की बिक्री और धर्मशाला-आश्रम के रूप में खड़ी इनकी होटल इंडस्ट्री।
लेकिन मैंने इन पर गौर फरमाया कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक दिमाग दौड़ाया तो इनका एक और व्यापार सामने निकलकर आया जो कि दिनों-दिन फल-फूल रहा है और वह है अय्याशी करना, जमीन हथियाना, प्रशासन व राजनीतिक दलों से मिलीभगत व भक्त के काले धन को अपने प्रचार-प्रसार व अपने काले धन को भक्त के व्यापार में लगाना आदि-आदि। साथ ही अपने लिए सोने-चांदी के पलंग का निर्माण करवाना। इस सारे जतनों से इनकी दौलत अकूत होती जाती है।
ऐसे में सोचिए व्यापारी वर्ग कितना आहत होता है कि जब सभी समस्याओं से लड़कर वह दो से पांच लाख ही कमा पाता है और दिन में 10 जगह और 10 बार उसे खुद को चोर सुनना पड़ता है। वहीं बाबा लोग सीना ठोककर चोरी करते हैं और विलासिता पूर्ण जीवन जीते हैं। वहीं देश की आर्थिक मजबूती के लिए व्यापारी वर्ग जो कि दिन-रात खटता है और महीने में 10 से 15 दिन तक एक टाइम रोटी खाकर गुजारा करता है।
मैं भारत के समस्त उद्योग व व्यापार में लगे हुए व्यापारी भाइयों चाहे वो चाय बेचने वाला हो या टाटा-अंबानी  जैसा नामी उद्योगपति। सभी को सलाम करता हूं कि ईश्वर ने हमें इस तरीके से काम करने की शक्ति प्रदान की। सरस्वती मां से यही प्रार्थना है कि हे सरस्वती मां हम व्यापारियों को सदुद्धि दे और इन बाबाओं की इंडस्ट्री के आगे ईमानदारी से खड़े रहने की ताकत दे।


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