सोमवार, 2 सितंबर 2013

नेताओं को पुलिस सुरक्षा जर्रुरत या सत्ता की हनक

देखिए ये लोकतंत्र की कैसी विडंबना है कि इसमें जनता के द्वारा चुने गए लोग, प्रशासनिक अधिकारी और राजनीतिक दलों के बड़े पदाधिकारी जो कि खुद को जनसेवक कहलाते हैं। ऐसे लोगों में खुद को खास प्रदर्शित करने की सबसे ज्यादा भूख रहती है। इसका खामियाजा जनता को उठना पड़ता है और उसे अपराधियों और अपराध से दो-चार होना पड़ता है।
आजादी के बाद का इतिहास खंगाले तो ये चीज गौर करने लायक है कि उस दौर के जो जनप्रतिनिधि हुआ करते थे, जिन्होंने की अपनी जान की परवाह किए बिना हमें आजादी दिलाई थी, उनकी जान को हमेशा खतरा रहता था। सादा जीवन और उच्च विचार के सूत्र पर चलने वाले हमारे वो महान नायक आडंबर से कोसों दूर रहते थे। अगर उन्होंने भी ऐसा किया होता तो शायद हमें आजाद होने में काफी समय लगता और वो देशभक्त भी नहीं कहला पाते।
भारतीय संविधान के मुताबिक आम जन को सुरक्षा मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। इसी व्यवस्था के तहत प्रत्येक राज्य में पुलिस बल का गठन किया गया। वैसे तो हमें ये जानकारी है कि रौब गांठने और सत्ता की हनक दिखाने के लिए ही आज के नेता और मंत्रियों के संग कई पुलिसकर्मी उनकी सेवा में तैनात रहते हैं। ऐसे में आमजन की सुरक्षा के लिए पुलिसकर्मियों की संख्या कम हो जाती है। वैसे ही हमारे राज्य की पुलिस स्टॉफ की कमी से जूझ रही है और नेताओं की चाकरी और वीआईपी ड्यूटी के कारण वह अपना मुख्य काम जो कि जनता की सेवा करना है वह नहीं कर पाती है। वैसे आंकड़ों पर गौर करें तो हमारे देश में जो पुलिस और पब्लिक का रेश्यो है वो कई देशों के अनुपात में कम है। वहीं पुलिस को उसके मुख्य काम से हटाकर दूसरे कामों में लगा देने से चोरी, अपहरण और अन्य घटनाओं में इजाफा होता है। फिर इन घटनाओं का खुलासा नहीं होता है तो भी इसके लिए हम पुलिस को ही जिम्मेदार ठहराते हैं, जबकि वह तो हुक्मरानों के आदेशों को पूरा करने में ही पूरी हो जाती है।

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