सोमवार, 9 सितंबर 2013

पर्यावरण संरक्षण के लिए बने सख्त और प्रभावी कानून

वन्यजीव पर्यावरण और समाज को चलाने में महत्वपूर्ण योगदान रखते हैं। आज जिस तेजी से मनुष्य शाकाहार की प्रवृत्ति छोड़कर मांसाहारी होता जा रहा है और जिस तरीके से शहरों में मांसाहार के रेस्टोरेंट और फूड चेन आए दिन खुलती जा रही हैं, उसी अनुपात में हमारे पर्यावरण के प्रहरी कहे जाने वाले पशु-पक्षी भी नदारद होते जा रहे हैं। अगर इसी रफ्तार से ये चलता रहा तो वह दिन ज्यादा दूर नहीं कि जब हमारे पर्यावरण और आसपास से तमाम पशु-पक्षी ही गायब हो जाएं।
वैसे तो जीव-जंतुओं को सरंक्षण देने और इनकी संख्या में इजाफा कर पर्यावरण को अनुकूल दिशा देने के लिए काफी कायदे-कानून बनाए गए हैं। वहीं कई संस्थाएं और संगठन भी इस दिशा में जोर-शोर से काम कर रहे हैं। जिस तरह से हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी तरह से वन्य जीवों के संरक्षण के कानून और पर्यावरण आदि के द़ृष्टिकोण से ये बड़ा महत्वपूर्ण है। वहीं दूसरी ओर एक पहलू ये भी है कि जिस चीज पर रोक लगा दी जाती है उसे ही व्यापार जगत और कुछ लालची किस्म के लोग अपनी कमाई का जरिया बना लेते हैं।
एक ओर हम मांसाहार की नई-नई डिशों को पेश कर रहे हैं तो दूसरी ओर स्कूलों में मेंढक की चीर-फाड़ के जरिए जो बायोलोजी का ज्ञान दिया जाता था उसे प्रतिबंध कर दिया गया। ऐसा होने से आज लाखों छात्रों को प्रायोगिक परीक्षा से महरूम होना पड़ रहा है। इस देश की ये कैसी विडम्बना है कि टीवी पर रोज-रोज नए रेस्टोरेंट मांसाहार परोसते नजर आते हैं। वहीं नए-नए मांसाहारी होटल और रेस्त्रां खुलते हैं जिनकी रसोई में मांसाहार पकता है। इसके अलावा कई बड़े शहरों में ऐसे रेस्टोरेंट मिल जाएंगे जो कि मांसाहार के लिए ही प्रसिद्ध है, इन्हीं में से एक रेस्टोरेंट है केएफसी। आज इस रेस्टोरेंट की चेन हर शहर में मिल जाएगी और धीरे-धीरे इस रेस्टोरेंट में आने वालों की संख्या में रोज इजाफा हो रहा है।
सरकार की इस तरह की दोगली नीतियों का ये तो मात्र एक उदाहरण है। इनसे ये समझ आना काफी मुश्किल होता है कि सरकार वास्तव में वन्य जीवों को संरक्षण देना चाहती है या अपनी कमाई का माध्यम बनाना चाहती है। यदि गौर से देखें तो जितनी भी दवाइयों का परीक्षण या बीमारियों का टेस्ट होता है वो सबसे पहले चूहों पर ही किया जाता है। हमारी वानर सेना, जिसे कि हम अपने पूर्वजों का दर्जा देते हैं। आज वो जिस तरीके से उत्पात मचाते हैं और जनहानि के साथ संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाते हैं और हम मूक दर्शक बने देखते रहते हैं।
यहां सोचने का प्रश्न ये है कि पर्यावरण के लिए संरक्षण भी जरूरी है और प्रेक्टिकल ज्ञान देना भी। अत: सरकार को चाहिए कि मांसाहारी खाने पर प्रतिांध लगाए और शाकाहार को बढ़ावा दे। दूसरी तरफ बायोलोजी का ज्ञान पाने वाले छात्रों को प्रेक्टिकल ज्ञान देने की उपलधता भी सुनिश्चित कराए।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें