रविवार, 8 सितंबर 2013

आगरा पर फिल्म बनाएं प्रकाश झा


मुगलकालीन बादशाह अकबर ने आगरा को राजधानी ऐसे ही नहीं चुना था। काफी पारखी नजरों से उसके नवरत्नों ने आगरा को राजधानी चुना। 20वीं सदी में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सुपुत्र संजय गांधी भी आगरा को देश की राजधानी का दर्जा देने को तत्पर थे और तो और शाहजहां ने भी अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण कर आगरा के लोगों को दोनों हाथों से व हर प्रकार से नेमत लुटाई थी, लेकिन कहते हैं ना कि भाग्य से ज्यादा या समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिला। ये मुहावरा आगरा की जनता पर पूरी तरह से लागू होता है। वहीं, उसने अपने सामने ही अपने शहर के नाम पर दूसरे को फलता-फूलता देखा है। ऐसे में मन मसोस कर रह जाने के अलावा उसके पास कोई चारा ही नहीं बचता। ये कहावत भी पूरी तरह से राजनीतिक दलों व प्रशासनिक अधिकारियों पर फिट रहती है। भगवान देता है तो आगरा भेज देता है। आप पिछले तीन दशकों को देखें तो हर पार्टी ने आगरा का इमोशनली इस्तेमाल किया और अपनी उपवन को हर तरीके से फलीभूत किया। चाहे वो राजनीतिक दलों की मीटिंग हो या राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन अथवा देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की योजना। सभी में मेरे शहर के नाम पर मेरे ही शहर के लोगों को सब्जबाग दिखाए और फाइलों व फाइव स्टार होटलों में जमकर शाहखर्ची की। आज फिर मेरे मन को काफी धक्का लगा कि जब आगरे के सभी प्रतिष्ठित न्यूज पेपर्स ने अपने-अपने तरीकों से जनता के दर्द को और माननीयों की खुशामदी को अपने शदों में पिरोया तो मेरा भी मन विचलित हो सोचने पर मजबूर हो गया कि कहां तो न्यूज पेपर्स की छोटी-छोटी बात माननीय और मंत्रियों को उनके अफसर मार्क करके दिखाते हैं और वो किस तरह उसका राजनीतिक लाभ लेते हैं। उस पर भी वो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन मुद्दों को जनता के मध्य ले जाकर अपना फायदा उठा लेते हैं। कहां तो पिछले 30 दिन से शहर के सभी न्यूज पेपर्स सड़कों की खस्ताहाल पर ढोल पीट रहे थे। प्रशासन तो छोड़िए उसके कद्दावर मंत्री और अन्य मंत्रियों पर भी कोई असर नहीं हो रहा था। हाल फिलहाल के दिनों में 24 घंटों के भीतर ही अलाद्दीन के चिराग की तरह हर तरफ ना केवल सड़क का निर्माण हो रहा है, जोरदार सफाई व्यवस्था भी हो रही है। ये अलग मुद्दा है कि जहां से हमारे माननीय गुजरेंगे वो स्थान साफ-सुथरा और चमचमाता हुआ रहेगा और उसके 10 कदम दूर की कॉलोनियों में से गुजरने पर आपको कन्नौज के इत्र का सहारा लेना होगा। साथ ही अपने कमर व शरीर के दर्द को दूर करने के लिए फिजियो की शरण। आगरा की सड़कों ने मैकेनिकों को रोजगार दे रखा है। निश्चित रूप से वो गैरेज मालिक उनको हृदय से धन्यवाद देते हैं। प्रश्न ये उठा कि अगर रातों-रात हर काम हो सकते हैं और अगर उनमें धन का भी अभाव ना हो तो न्यूजपेपर्स में जो हम न्यूज पढ़ते हैं कि फलां फाइल कई विभागों के चक्कर खाकर कहीं खो गई और शासन को प्रस्ताव भेज दिया है। आज तेज धूप तो आज पानी गिर रहा है। ये सारे जुमले इस वक्त क्यों नहीं सामने आ रहे। क्या आगरे की जनता इतनी सीधी है कि वो ये भी नहीं जानती कि जो लाभ आगरा को मिलना चाहिए वो लाभ फाइलों में मिलकर ए से लेकर जेड़ तक की पॉकेट भर रहा है।
मेरे आगरे के जागरूक नागरिकों व प्रमुख न्यूज पेपर्स से आग्रह है कि आगरा के नाम पर आने वाली तमाम सुविधाएं का फ्लॉप फिल्मों की तरह डिब्बाबंद होती रहेंगी क्यों ना वो अपने प्रयास से सत्याग्रह या 3 इडियट जैसी फिल्मों या बड़ौदा जैसे शहर की तरह आगरा को सफलता संपन्नता दिलाने में सहयोग प्रदान करें। मेरा आग्रह फिल्म निर्देशक प्रकाश झा से भी है कि वो आसाराम जैसे पापी पर फिल्म न बनाकर अकबर की राजधानी और विश्व में ताजमहल के लिए जाने जाने वाले शहर पर फिल्म बनाकर आगरा के लोगों पर उपकार करे और धन भी कमाए।

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