शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

निमंतरण पत्र का जंजाल

विवाह भारतीय सम्भीयता में एक तपस्या व संस्कृति है ये मात्र स्त्री व पुरुष का मिलन ही नहीं बल्कि दो परिवारो के जोड़ने का उत्सव है।ये दो परिवारो के वंश को बढ़ाने की संस्कृति है। आदिकाल में इस पारिवारिक उत्सव को मनाने के लिए समाज के लोगो को एकत्रित किया जाता था,ढोल तमाशे व स्वादिष्ठ पकवान खाकर उसके साझी बनते थे,परन्तु आज वैश्वीकरण में उन परम्पराओ और संस्कृतियो ने अपने रूप बदल लिया है और कई चीज़े जो पहले इसलिए शुरू की गयी थी जिससे समाज में पारिवारिक प्यार बढ़े परन्तु अब समाज में पढ़ने लिखने के साथ साथ आर्थिक संपन्नता बढ़ने से उनके रूप बदलते जा रहे है जिससे ये विवाह का जो उत्सव है उनका अब रूप बदल गया है वही बदलाव व नई व्यवस्थाये  परेशानी के साथ बुराई व विलासिता का सबब भी बनती जा रही है- जैसे निमंतरण पत्र।आज जिस तरह से गाँव शहर बनते जा रहे है और शहर महानगर बनते जा रहे है उनमे महंगे निमंतरण पत्र बाटना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है। निमंतरण पत्रो पर इतने पैसे खर्च  हो रहे है कि  एक गरीब बेटी का कन्यादान हो सकता है।आज के हाई हाई टेक समय में  इस वयवस्था को व्यक्तिगत  निमंतरण के  रूप में मान्यता होनी चाहिए  जैसे  व्हाट्सप्प,ईमेल ,एसएमएस  व डाक वयवस्था से भेजने का प्रावधान होना चाहिए। इसके लिए समाज के लोगो को सहर्ष  स्वीकार करके धन व समय बचाना चाहिए उस धन व समय को परिवार जन के साथ व्यतीत करके पारिवारिक व सामाजिक प्यार व उल्लास से उत्सव मनाना चाहिए सम्पूर्ण समाज को इसके लिए पहल करने के साथ जागरूकता के कार्यक्रम अपने अपने समाज व समितियों व क्लब और व्हाट्सप्प,फेसबुक  और ट्विटर पर चलाने  चाहिए। 

मै लेखक राजीव गुप्ता आपको विश्वास दिलाता हूँ  कि मुझे अगर कोई निमंत्रण फ़ोन पर देगा तो में उससे सहर्ष  स्वीकार करूँगा।





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