सोमवार, 22 जुलाई 2013

क्या हम हिंदू राष्ट्र हैं


अमरनाथ में हुए बवाल की खबर पढ़ी। इसे पढने  के बाद लगा कि क्या हिन्दू राष्ट्र में हिंदुओं  को हर ओर से अपने फर्ज के लिए झुकना होगा और शांति से बिना  आवाज किये और ये मानते हुए कि हमारा तो  कोई नहीं है। ऐसे समय में विचार कौंधता है कि प्राकृतिक आपदा (हाल ही कि केदारनाथ की घटना)  से जो विनाश हुआ उसमें केंद्र और राज्य सरकार की जो संवेदन हीनता देखने को मिली।  हजारों लाखों लोग बेघर और बर्बाद हो गए। कई लोगों ने मदद के लिए तडपते हुए  जान दे दी। एक रोटी के लिए, एक दवाई की गोली के लिए आस से निहारते हुए आँखें भी पथरा गयी, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों ने ये  साबित कर दिया कि अगर इसी हिन्दू धर्मस्थल की जगह कोई और धर्मस्थल होता तो वोट की राजनीती को लेकर उत्तराखंड या केंद्र सरकार ही नहीं दूसरे राजनीतिक दल भी भगदड़ मचा देते। ज़मीन आसमान एक कर उनका सच्चा हितेषी  होने का दावा करते।
इसी प्रकार से कश्मीर की घटना को देखें तो एक इमाम की पिटाई के बाद कितना बवाल हुआ। हाल ही प्रदेश में हुई दो  घटनाएं कुंडा में डीएसपी की शहादत  के बाद और मथुरा के सिपाही सतीश की शहादत में प्रदेश सरकार का कैसा रवैया रहा ये किसी से छुपा नहीं है। दोनों ही मामलों में सरकार की दो नीतियाँ देखने को मिली। ऐसे में ये सवाल उठता है कि जो गुजरात सरकार ने हिन्दुओं को बचाने के लिए किया, जिसकी कि भर्त्सना समय समय पर दूसरे राजनीतिक दल आज भी कर रहे हैं तो क्या इस हिन्दू राष्ट्र को गुजरात जैसा सुशासन नहीं  चाहिए या उसकी तरफदारी नहीं करनी चाहिए। अगर हम अपने आपको सच्चा भारतीय कहते हैं तो हम लोगों को  परंपरा, धार्मिक स्थल, रीति रिवाज और धर्म को बचाने और देश की उन्नति और अपने आपको दुनिया में एक स्थान पाने के लिए आगामी चुनावों में सजग मतदाता की जिम्मेदारी निभानी होगी। हर वोटर की ये जिम्मेदारी बनती है कि कौन नेता या भारतीय राष्ट्र विरोधी है या कौन नहीं है और कौन  बातों से हटकर देश  के विकास की बात करता है उस के बारे में तय करे कि किसे वोट देना है। इस लेख का आशय किसी की भावनाओं को चोट पहुचाना नहीं है। सिर्फ एक ही मकसद है कि देश में ऐसी घटनाएं न हों।

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