बुधवार, 24 जुलाई 2013

विरोध का नायाब तरीका


आदमी  रोजमर्रा की जिंदगी में नई-नई दिक्कतों को झेलते हुए इतना त्रस्त हो गया है कि वो अपनी बात कहने का कोई न कोई उपाय सोचता रहता है।  उन उपायों से सुधार होता है कि नहीं ये एक अलग  प्रश्न है। शासन और प्रशासन  तरीके के विरोध ( रास्ता जाम, बैनर लेकर निकलना, हाय- हाय के नारे लगाना, हड़ताल)  को झेलने का आदी हो गया है कि दुसरे दिन अखबार में खबर छपकर अंधकार की कालिख में कहीं खो जाती है। विरोध के इन तरीकों से जन मानस को इतनी परेशानी होती है कि कई बार मरीजों को जान से हाथ  धोना पड़ता है तो कुछ लोगों को मुश्किलों का सामना  करना पड़ता है और आम एव मजदूर वर्ग को रोजी रोटी का संकट हो जाता है। ऐसे समय में एक वर्ग जो ड्राइंग रूम में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ अपने बौद्धिक स्तर का बखान करता है। सामर्थवान होते हुए भी अपने आपको या तो अलीट ग्रुप में मानता है और इसी कारण किसी भी प्लेटफार्म पर वो इन नीतियों (सरकारी नीतियों, घोटालों और खर्चों) का विरोध नहीं करता।
ऐसे समय में मुंबई के अदिति restaurent ने विरोध का जो तरीका अपनाया है लेखक के अनुसार वो वाकई बेमिसाल है। क्या गलत है और क्या सही ये अलग बात है, लेकिन विरोध के इस तरीके से न तो आम जनता परेशान होगी और ना ही किसी की ज़िन्दगी जाएगी। ये तरीका एक परिवार को अपनी बात को समझाने का सार्थक प्रयास है वो भी बिना देश की संपत्ति को नुक्सान पहुँचाए, बिना कोई खर्च बढाए विरोध का ये तरीका जापानी कामगारों के तरीके की ही तरह है कि जो विरोध के लिए काली पट्टी एक घंटा ज्यादा काम करते हैं या producation बढ़ाने के लिए एक घंटा ज्यादा काम करते हैं।
ऐसे तरीकों को बुद्धिजीवी वर्ग अपनाए तो हर क्षेत्र में देश की तरक्की संभव है और ये तरीके घोटाले, भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक कमी करने में सार्थक साबित हो सकते हैं। विरोध के इस तरीके पर किसी को कोई आपत्ति है तो वो अपनी बात रखे या अदालत की शरण ले। हिंसा, तोड़फोड़ से विरोध करना गलत तरीका है। इससे केवल सरकारी और निजी संपत्ति को नुक्सान पहुँचता है।  ऐसे में ये प्रश्न उठता है कि क्या हम प्रजातंत्र में जी रहे हैं या dectatorship में।

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