जैसे जैसे भौतिक प्रगति हो रही है, मानव अपनी मानवीय संवेदना खोता जा रहा है। उसे केवल अधिकार याद हैं कर्तव्य नहीं। आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती इंसानियत को जिंदा रखने की है। इसके लिए लफ्फाजी नहीं अपितु समर्पण से कम करने की जरुरत है।
रविवार, 18 दिसंबर 2016
सोमवार, 20 जून 2016
दिनांक:20/06/2016
योग का अर्थ
जोड, जोड का अर्थ
सबल होना,ज़्यादा
होना, सदियों से
हम भारतियों के जीवन का योग
हिस्सा थी।हमारी
जीवन शैली भी
इस प्रकार थी
सुबह सोकर उठने
से लेकर रात
सोने तक
हर श्रण हम शारीरिक
क्रिया इस प्रकार
करते थे वो
अपने आप योग
होता था।जैसे
सुबह उठकर धरती माँ व अपने
बुज़ुर्गों के चरण
स्पर्श करना,उकड़ू
बैठ कर दातून
करना वो भी
पेड़ से तोड़कर,जंगल जाना लोटा पकड़कर, नहाना कुए से
पानी लाकर,सभी
क्रिया पर ध्यान
दे तो स्वयं
समझ आ जायेगा कि अपने दादा,बाबा क्यों
स्वस्थ थे और
योग का क्या
महत्व है।अंग्रेज़ों ने और
इन चलचित्रों(सिनेमा)
ने हमें अपनी
जीवन शैली से
भटका दिया और
अच्छाई से बुरी
जीवन शैली पर
चले गये जिसके
परिणाम स्वरूप आज न
केवल शारीरिक बल खो
रहे है अपितु
सोचने, समझने,सहनशक्ति खो चुके
है।बात- बात पर
गुस्सा करते है
और डॉक्टर के
पास जाना पड़ता
है आज किसी
डॉक्टर के पास
चले जाओ वो
आपको जीवन शैली
सुधारने की सलाह यह
कहते हुए देता
है मेरी दवा
का रोल आपकी
इच्छा शक्ति और
जीवन शैली के परिवर्तन
से आप जल्द स्वस्थ
हो पायेंगे।आज इस
योग विघा को जो
केवल भारत वर्ष
की थी 5000
वर्ष पुरानी उसे
हमें हनुमान जी
की शक्ति की
तरह याद करना
पड़ रहा है
और उसे याद
दिलाने के लिए
फिर पश्चिम के
तरीके व टी.बी.
का सहारा लेना
पड़ रहा है।कल 21-06-2016 को
योग दिवस के
रूप में बना
रहें है ।पश्चिम
छोड़ो भारतीय कम्पनियों
का भी योग
के नाम पर
अरबों का व्यापार
चल रहा हैं
जैसे - योगा मैट
(पहले दरी पर
हो जाता था
)योगा कपडे,बुक,योगा कैसिट,सी.डी.आदि का व्यापार दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है
साथ ही इन
व्यापार में रोज़गार
भी दिया। आप जानते
है कुछ बाबाओं
ने तो अपने
व्यापार का सम्राज्य
खड़ा कर लिया
है साथ ही
वो राजनीती में
भी दखल- अंदाज़
करने लगें हैं
योग के साथ
योग टीचरों की
भी फौज खड़ी
हो गयी है
अब तो कई विश्वविघालय
में योगा पाठ्यक्रम सम्मिलित कर
लिया गया है
योगा में भी
विभिन्न योग
के पाठ्यक्रम
में पढ़ाया जा
रहा है जैसे
जीवन जीने का
(लाइफ ऑफ़ स्टाइल
)योग,शारीरिक क्रिया
का योग, रहन-
सहन(पोशचर) का
योग, मस्तिष्क का योग,हड्डी का योग
(फिजोधेरिप्य) आदि आदि।योग
की महिमा इतनी
बढ़ गई है
कि अब लोग
अपने पुराने धंदे
छोड़ कर योग
गुरु बन रहें
है और बाबाओं
की तरह अपनी
योग की किताबें
व योग का
सामान बेच रहें
है और तो
और इस काम
में पोलिटिकल पार्टियां
और हमारे अख़बार भी इस
योग को भुनाने
में कोई कसर
नहीं छोड़ रहें
हैं।इस साल
योग टीचरों की
कल बहुत कमी
महसूस हो रही
है।आशा नहीं
पूर्ण विश्वास है
अगले साल योग
टीचरों की कमी
नहीं रहेंगी अगर
हम विलासता छोड़
कर भारतीय संस्कृति
और सभ्यता को
अपना लेंगे तो।कल योग दिवस
पर देखते है
योग कितना होगा
और उसका जोड़
कितना होगा हम
केवल दिखावे के
लिए काम करते
है न की
अपनी संतुष्टि के
लिए। योग दिवस
ज़रूर मनायें पर
अपने साथ अपने
बच्चों को इस
तरह के दिन
चर्या सिखाएं कि
वो दिखावे के
लिए या योग
करने के लिए
मजबूर न हो।सभी
के स्वस्थ जीवन
और खुशहाल जीवन
के लिए लेखक
कामना करते है।
शुक्रवार, 4 मार्च 2016
होली के अवसर पर चाइनीज़ रंगों से नुकसान
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा आदेश उत्तरप्रदेश सरकार को चाइनीज़ मंजे के भण्डारण,विक्रय को प्रतिबन्ध करने के सम्बन्ध में किया गया हैं।निश्चित रूप से ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में चीन में निर्मित मंजो के प्रयोग से जो दुर्घटनाएं होती हैं और पर्यावरण का नुकसान होता है उसके लिए यह निर्णय स्वागत योग्य है।क्या हमें इसी तरह भारतीय या चाइनीज़ के उन पदार्थों पर निगरानी नहीं करनी चाहिए जो शारीरिक व पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं हमारी संस्था लोकस्वर उत्तरप्रदेश शासन द्वारा चीन से निर्मित मंजों को रोकने के लिए जो कार्यवाही कर रही है उसके लिए हम धन्यवाद देते हैं,साथ ही आने वाले भारत के बहुत बड़े पर्व को जो आपसी भाईचारा व प्रेम को बढ़ाता हैं ऐसे होली के पर्व पर प्रयोग होने वाले चाइनीज़ रंगों का प्रयोग पूर्णताः बंद करने की अपील करते हैं।यह रंग पर्यावरण को ही नुकसान नहीं पहुँचाते अपितु मनुष्य की त्वचा,आँख और बालों को भी नुकसान पहुँचाते हैं।इसका खामियाज़ा उस मनुष्य को और उसके परिवार को जीवन पर्यन्त भोगना पड़ता है।अतः इन रंगो का प्रयोग अपने मण्डल में हो ऐसी प्रक्रिया अपनायें साथ ही दीवाली पर आने वाले चाइनीज़ पटाखे जो पूर्व में कई आगरा मण्डल के निवासियों को नुकसान पहुँचा चुकें हैं उनका बहिष्कार करें ।अतः इसके प्रतिबन्ध के लिए आगरा प्रशासन अभी से उचित कार्यवाही करें व हमारी संस्था लोकस्वर को अनुग्रहित करें।
होली के अवसर पर चाइनीज़ रंगों से नुकसान
माननीय उच्च न्यायालय द्वारा आदेश उत्तरप्रदेश सरकार को चाइनीज़ मंजे के भण्डारण,विक्रय को प्रतिबन्ध करने के सम्बन्ध में किया गया हैं।निश्चित रूप से ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में चीन में निर्मित मंजो के प्रयोग से जो दुर्घटनाएं होती हैं और पर्यावरण का नुकसान होता है उसके लिए यह निर्णय स्वागत योग्य है।क्या हमें इसी तरह भारतीय या चाइनीज़ के उन पदार्थों पर निगरानी नहीं करनी चाहिए जो शारीरिक व पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं हमारी संस्था लोकस्वर उत्तरप्रदेश शासन द्वारा चीन से निर्मित मंजों को रोकने के लिए जो कार्यवाही कर रही है उसके लिए हम धन्यवाद देते हैं,साथ ही आने वाले भारत के बहुत बड़े पर्व को जो आपसी भाईचारा व प्रेम को बढ़ाता हैं ऐसे होली के पर्व पर प्रयोग होने वाले चाइनीज़ रंगों का प्रयोग पूर्णताः बंद करने की अपील करते हैं।यह रंग पर्यावरण को ही नुकसान नहीं पहुँचाते अपितु मनुष्य की त्वचा,आँख और बालों को भी नुकसान पहुँचाते हैं।इसका खामियाज़ा उस मनुष्य को और उसके परिवार को जीवन पर्यन्त भोगना पड़ता है।अतः इन रंगो का प्रयोग अपने मण्डल में हो ऐसी प्रक्रिया अपनायें साथ ही दीवाली पर आने वाले चाइनीज़ पटाखे जो पूर्व में कई आगरा मण्डल के निवासियों को नुकसान पहुँचा चुकें हैं उनका बहिष्कार करें ।अतः इसके प्रतिबन्ध के लिए आगरा प्रशासन अभी से उचित कार्यवाही करें व हमारी संस्था लोकस्वर को अनुग्रहित करें।
बुधवार, 24 फ़रवरी 2016
रेलवे एक तीर
से कई निशाने
पुराने ज़माने में अग्रेज़ों ने जो रेलवे की लाईनें बिछाई थी, आज वो रेलवे लाईने इतनी सार्थक नज़र आ रही है जिससे जाम के साथ जनहानि,पर्यावरण,कम खर्चीली यातायात व्यवस्था साथ
ही रेलवे विभाग
की आय और
शहर में गन्दगी
को बचाया जा
सकता हैं,अगर
उन रेलवे लाईनो (रेलवे स्टेशन
) पर हम
एक लोकल ट्रैन
चला दें तो
इन समस्त परेशानियों से निजात पाने के
साथ अपने शहर
को स्वक्ष व स्मार्ट शहर बना सकते हैं।आज
मेरा शहर आगरा
स्मार्ट शहर की
दौड़ से काफी पिछड़
गया है ऐसे
में लेखक को
लगता हैं कि
आगरा के नागरिकों
के साथ प्रशासन
व राजनैतिक लोगों
के साथ रेल
मंत्रालय को अपनी
ये मांग रखनी
चाहिए कि जो
रेलवे की संपत्ति
बेकार पड़ी है
और उस पर
पहले से ही
निवेश हो चुका
हैं उस पर
एक लोकल ट्रैन अगर
हम ऐसे चालू
करते है टूंडला
से जमुना ब्रिज,जमुना ब्रिज
से आगरा सिटी
,आगरा सिटी से
राजामंडी,बिल्लौचपुरा और आगरा
कैंट के लिए चलायें। रेलवे की संपत्ति उपयोग के साथ
उसे जंग लगने
व चोरी से
भी बचाया जा
सकता है।दूसरी ओर
मेरा शहर आगरा मॉडल सिटी के
रूप में जाम पोल्लुशन,
सस्ती यातायात व्यवस्था ,गंदगी व जनहानि भी रुकेगी।अगर आपको मेरा
सुझाव ठीक लगता
है तो कृपया
इसे हर मंच
पर अपनी मांग
रखें साथ ही रेल
मंत्रालय को आगरा
के सांसद के
साथ रेल मंत्री से मिलकर एक
ब्लू प्रिंट तैयार
करायें।
सोमवार, 22 फ़रवरी 2016
आरक्षण का दंश
अब भारत के
लिए एक बहुत
बड़ा नासूर बनता
जा रहा हैं
। यह राष्ट्र को
जितनी क्षति पंहुचा
रहा है और
उसकी छवि ख़राब
कर रहा है
उससे ज़्यादा भारत
के आने वाले
भविष्य और सपूत
जो की अपनी
बौद्धिक क्षमता से आपने
प्रदेश ही नहीं
बल्कि विदेशो में
भी सम्पूर्ण राज्य
करने का जो
उत्साह है, वह
उत्साह आत्महत्या में तब्दील
होता जा रहा
है । आज
जाट आरक्षण में
जो कल राष्ट्र की
संपत्ति व जनहानि नागरिको के बीच
में भय की
स्थिति देश विदेश
से आने वाले
पर्यटकों का बेहाल
होते हुए टीवी
पर देखना व
अखवारों के माध्यम
से जानकारी आने
के बाद लेखक
का मन इतना
विचलित हो गया
कि वह अपने
आपको यह लिखने
से रोक नही
सका। जो जाट
आरक्षण आंदोलन में राष्ट्र
की संपत्ति का
नुकसान हुआ है
उसकी भरपाई एक
बार फिर आम
जनता को कर
अदा करके पूरी
करनी पड़ेगी।समझ से
परे हो रहा
है क्या हम
भारतीय शुरू से
ऐसे ही थे
कि भीख मांग के खाने वाले
नरभक्षियों की तरह
आरक्षण की आड़
में जंगल राज
पैदा करना देश
की संपत्ति के
साथ आम पब्लिक की
संपत्ति को नष्ट
करना मात्र ये
दर्शाता है कि
हम राजनैतिक और देश
की वयवस्था को
चुनौती दे कर
उन्हें मजबूर कर देंगे।
अपनी मांगों के
प्रति मुझे फिल्म
का वो सीन
याद आता है
जिसमे खलनायक एक
चाकू की नोक
पर नारी की
इज़्ज़त लूटने पर
उससे विवश करता
है और एक
फिल्म में बाप
को बच्चे की
धमकी देकर उससे
नाजायज़ काम कराता
है आज जो
सरकार की हालत
दिखाई दे रही है
वो उसी नायका
और बच्चे के
बाप की तरह
दिखाई दे रही है, इधर
कुँआ उधर खाई
।कब तक राजनैतिक
लोग अपने फायदे
के लिए इस
तरीके के अव्वल
दर्जे के घटिया
पैतरे अपना कर
राष्ट्र को नुकसान
पंहुचाते रहेंगे ।मुझे लगता
है कि इन
राजनैतिक लोगो को
अपने ग्रेह्वान में झांकना
चाहिए और अपने
परिवार का कोई
सदस्य ऐसे आरक्षण के दंश
में फसना चाहिए
और आरक्षण के
कारण अपनी क़ाबलियत
का गला घुटते
हुए और आत्महत्या
होते हुए देखेंगे,
शायद तब ही
इन लालचियों का
राष्ट्र के प्रति
प्रेम जागेगा,हांलाकि
राष्ट्र की कई
न्यायालयों में आरक्षण
जैसे दंश पर
अपनी कई महत्वपूर्ण
टिप्पड़िया की है।
परन्तु भारत का
एक बहुत बड़ा
बौद्धिक वर्ग क्यों
इस विषय पर
नही बोलता है ये
समझ से परे
है जबकि वह
ये जानते है
कि यह भष्मासुर
की आग है,
इसमें एक दिन
उसे भी जलना
पड़ेगा। फिर भी
वह अपनी आवाज़
व मांग न
तो किसी प्लेटफॉर्म
पर उठा रहा
है और न
ही राजनैतिक दलों
को उनकी मनमानी रोकने का
प्रयास कर रहा
है। दुनिया भर
के कार्टून और
मैसेज तो हमें
मिलते है पर
इसको रोकने के
लिए कोई ठोस कदम
नही उठा
रहे हैं । ऐसा मेरी
जानकारी में नहीं
है मुझे लगता
है की एक
बौद्धिक लोगो को
इस विषय पर
चिंतन करके ठोस
कदम उठाना चाहिए
और न्यायलयों के माध्यम
से राज्य और
केंद्र सरकार पर दबाब
बनाना चाहिए। हर
शहर के विधायक
सांसद के साथ
न्यायलों से भी
मदद लेनी चाहिए।
मेरे हिसाब से अब
समय आ गया है
कि इस कैंसर रुपी बीमारी
को जड़ से खत्म
करने के लिए
आवाज़ उठाई जायें।
लेखक का मानना है कि आरक्षण केवल इन लोगों
को मिलें ।1.
आर्थिक
आधार पर हर
गरीब को, चाहे
वो किसी जाती
धर्म का क्यों
न हो ।
2.
हर अपंग(दिव्यांग)को ।3.
हर अनाथ
को ।4.
देश के
लिए शहीद होने
वाले बच्चो को
।आओ मिलकर इस मुहीम
को चलाये और धर्म,जाती
के नाम पर
बंटते देश को
बचाए इससे क्रम
को आगे और
लिखेंगे।
शनिवार, 20 फ़रवरी 2016
निमंतरण पत्र का जंजाल
विवाह भारतीय सम्भीयता में एक तपस्या व संस्कृति है ये मात्र स्त्री व पुरुष का मिलन ही नहीं बल्कि दो परिवारो के जोड़ने का उत्सव है।ये दो परिवारो के वंश को बढ़ाने की संस्कृति है। आदिकाल में इस पारिवारिक उत्सव को मनाने के लिए समाज के लोगो को एकत्रित किया जाता था,ढोल तमाशे व स्वादिष्ठ पकवान खाकर उसके साझी बनते थे,परन्तु आज वैश्वीकरण में उन परम्पराओ और संस्कृतियो ने अपने रूप बदल लिया है और कई चीज़े जो पहले इसलिए शुरू की गयी थी जिससे समाज में पारिवारिक प्यार बढ़े परन्तु अब समाज में पढ़ने लिखने के साथ साथ आर्थिक संपन्नता बढ़ने से उनके रूप बदलते जा रहे है जिससे ये विवाह का जो उत्सव है उनका अब रूप बदल गया है वही बदलाव व नई व्यवस्थाये परेशानी के साथ बुराई व विलासिता का सबब भी बनती जा रही है- जैसे निमंतरण पत्र।आज जिस तरह से गाँव शहर बनते जा रहे है और शहर महानगर बनते जा रहे है उनमे महंगे निमंतरण पत्र बाटना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है। निमंतरण पत्रो पर इतने पैसे खर्च हो रहे है कि एक गरीब बेटी का कन्यादान हो सकता है।आज के हाई हाई टेक समय में इस वयवस्था को व्यक्तिगत निमंतरण के रूप में मान्यता होनी चाहिए जैसे व्हाट्सप्प,ईमेल ,एसएमएस व डाक वयवस्था से भेजने का प्रावधान होना चाहिए। इसके लिए समाज के लोगो को सहर्ष स्वीकार करके धन व समय बचाना चाहिए उस धन व समय को परिवार जन के साथ व्यतीत करके पारिवारिक व सामाजिक प्यार व उल्लास से उत्सव मनाना चाहिए सम्पूर्ण समाज को इसके लिए पहल करने के साथ जागरूकता के कार्यक्रम अपने अपने समाज व समितियों व क्लब और व्हाट्सप्प,फेसबुक और ट्विटर पर चलाने चाहिए।
मै लेखक राजीव गुप्ता आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मुझे अगर कोई निमंत्रण फ़ोन पर देगा तो में उससे सहर्ष स्वीकार करूँगा।
सोमवार, 1 फ़रवरी 2016
शनिवार, 9 जनवरी 2016
"अब समाजसेवा बनी स्व सेवा"
आजकल दुनियाभर में समाजसेवा नाम कमाने का एक बड़ा जरिया बन गयी है. आज हाल ये है कि ये समाज से ज्यादा स्व सेवा बन गयी है और छपास के रोगी व फुर्सतिये हर शहर के गली और मोहल्ले में हैं। इस तरह के कामों के लिए कई सव्ंयभु संघटन बन गए है. कई तो ऐसे भी हैं जिनकी कि हर शहर में ब्रांच हैं और मजे कि बात तो ये है की इन्होने हर महीने में एक दिन फिक्स कर लिया है और उस दिन तमाम एक्टिविटी भी करते हैं और अगले दिन उसका बढ़ चढ़कर गुणगान ही होता है मीडिया में.
लायंस और रोटरी क्लब समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत \ऐसे संघटन हैं जो कि दुनिया भर में आदर्श माने जाते हैं. दुनिया के लगभग हर देश में बड़े शहरों में इनकी ब्रांचेज हैं. जिस दौर में इनकी नींव रखी गयी थी तब बड़े तबके के मृदुभाषी लोग आपस में मिल नहीं पाते थे और उस जमाने में गेट टूगेदर जैसा कोई कांसेप्ट भी चलन में नहीं था.
उस दौर में प्रबुद्ध बौद्धिक स्तर वाले लोगों को इस क्लब्स से जोड़ा जाता था. ये वो लोग थे जो कि अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज के निचले लोगों को देने के लिए हमेशा तैयार रहता था ठीक वैसे ही जैसे कि आज फेसबुक के जुकरबर्ग और विप्रो के अजीज प्रेमजी.
इस क्लब्स की ओर से होने वाले प्रोग्राम में वे अपनी ओर से सहयोग राशि जरूर देते थे. ऐसा चलन आज भी है और निचले तबके के लोग भी छोटे मोटे आयोजन के लिए चंदा देते हैं.
भारत जैसे विकासशील देश में भी धीरे धीरे एक बड़ा तबका इस क्लब्स से जुड़ने लगा था. यहाँ के हर बड़े शहर में रोटरी और लायंस क्लब्स की ब्रांच है.
यहाँ इनसे जुड़ना एक स्टेटस सिंबल के रूप में भी देखा जा रहा है. अब कम्युनिटी सेंटर और दूसरी जगह के बजाय इस क्लब्स के प्रोग्राम पांच सितारा होटल्स में होने लगे हैं.
इन जगहों पर समाज सेवा काम और पांच सितारा कल्चर पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है और ज्यादा पैसा तड़क-भड़क पर खर्च किया जा रहा है.
इस फील्ड में हजारों ngo भी हैं. सभी अपनी अपनी गणित से सेवा करने में जुटे हैं गरीब की कम और अपनी ज्यादा. खैर ये एक अलग बहस का मुद्दा है.
छोटे मोटे क्लब्स और ngo के इन मठाधीशो को ये सोचना चाहिए कि अगर देश के सारे क्लब्स मर्ज हो जाये और एकजुट होकर सही मायने में गरीब की सेवा में पैसा खर्च करें तो देश में कोई भी गरीब न रहे और भूखा न सोये.
लेखक का ये मानना है कि कई क्लब्स को २ बातों पर गौर करना चाहिए कि वो पैसे का दुरूपयोग न करें और मीटिंग्स में जो पैसा जलपान में खर्च होता है उसे गरीब की सेवा में खर्च करें। वहीँ बड़े क्लब्स में पोजीशन पाने के लिए जो पैसा खर्च किया जाता है उसे गरीब के घर में ख़ुशी लाने के लिए खर्च करना चाहिए।
इस ब्लॉग पर आप अपने कमेंट्स दीजिये। आपकी राय को इस शहर और देश के लोगों के साथ साझा किया जाएगा. आपके विचारों का स्वागत है.
लायंस और रोटरी क्लब समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत \ऐसे संघटन हैं जो कि दुनिया भर में आदर्श माने जाते हैं. दुनिया के लगभग हर देश में बड़े शहरों में इनकी ब्रांचेज हैं. जिस दौर में इनकी नींव रखी गयी थी तब बड़े तबके के मृदुभाषी लोग आपस में मिल नहीं पाते थे और उस जमाने में गेट टूगेदर जैसा कोई कांसेप्ट भी चलन में नहीं था.
उस दौर में प्रबुद्ध बौद्धिक स्तर वाले लोगों को इस क्लब्स से जोड़ा जाता था. ये वो लोग थे जो कि अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज के निचले लोगों को देने के लिए हमेशा तैयार रहता था ठीक वैसे ही जैसे कि आज फेसबुक के जुकरबर्ग और विप्रो के अजीज प्रेमजी.
इस क्लब्स की ओर से होने वाले प्रोग्राम में वे अपनी ओर से सहयोग राशि जरूर देते थे. ऐसा चलन आज भी है और निचले तबके के लोग भी छोटे मोटे आयोजन के लिए चंदा देते हैं.
भारत जैसे विकासशील देश में भी धीरे धीरे एक बड़ा तबका इस क्लब्स से जुड़ने लगा था. यहाँ के हर बड़े शहर में रोटरी और लायंस क्लब्स की ब्रांच है.
यहाँ इनसे जुड़ना एक स्टेटस सिंबल के रूप में भी देखा जा रहा है. अब कम्युनिटी सेंटर और दूसरी जगह के बजाय इस क्लब्स के प्रोग्राम पांच सितारा होटल्स में होने लगे हैं.
इन जगहों पर समाज सेवा काम और पांच सितारा कल्चर पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है और ज्यादा पैसा तड़क-भड़क पर खर्च किया जा रहा है.
इस फील्ड में हजारों ngo भी हैं. सभी अपनी अपनी गणित से सेवा करने में जुटे हैं गरीब की कम और अपनी ज्यादा. खैर ये एक अलग बहस का मुद्दा है.
छोटे मोटे क्लब्स और ngo के इन मठाधीशो को ये सोचना चाहिए कि अगर देश के सारे क्लब्स मर्ज हो जाये और एकजुट होकर सही मायने में गरीब की सेवा में पैसा खर्च करें तो देश में कोई भी गरीब न रहे और भूखा न सोये.
लेखक का ये मानना है कि कई क्लब्स को २ बातों पर गौर करना चाहिए कि वो पैसे का दुरूपयोग न करें और मीटिंग्स में जो पैसा जलपान में खर्च होता है उसे गरीब की सेवा में खर्च करें। वहीँ बड़े क्लब्स में पोजीशन पाने के लिए जो पैसा खर्च किया जाता है उसे गरीब के घर में ख़ुशी लाने के लिए खर्च करना चाहिए।
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