किसी भी सिस्टम को चलाने के लिए एक व्यवस्था होती है और व्यवस्था में बैठे लोग उस व्यवस्था को चलाने के लिए निश्चित किए जाते हैं। बात चाहे देश, प्रदेश राज्य या परिवार चलाने की हो। अगर परिवार का मुख्य सदस्य हो तो वो मुखिया, कारोबार का मुखिया मैनेजिंग डायरेक्टर और प्रदेश का मुखिया सरकार होती है। सरकार का पूरा मंत्रिमंडल होता है, जिसमें अलग-अलग मंत्री के पास अलग-अलग मंत्रालय की जिम्मेदारी होती है। सरकार के नुमाइंदे जनता के वोटों से चुने जाते हैं और सरकार चलाने की जिम्मेदारी जनता के वोटों से निश्चित की जाती है। चुनाव के बाद जो पक्ष जीतता है वो सत्ता पक्ष और दूसरा पक्ष जिसके पास बहुमत नहीं होता है, वो विपक्ष में बैठता है। ये व्यवस्था परिवार या कारोबार चलाने के लिए लागू नहीं होती है, अन्यथा इसके क्या परिणाम होते, ये आप खुद ही समझ सकते हैं।
देखिए देश की जनता का ये कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि जो पक्ष-विपक्ष के लोग सदन में एक-दूसरे के कपड़े उतारने में जरा भी नहीं हिचकते हैं और मर्यादा शब्द की तौहीन करते हुए अनर्गल शब्दों का जमकर इस्तेमाल करते हैं। हर 15-20 दिन में ही एकाध आदमी जूता फेंकते या मारपीट करता हुआ मिल जाता है। कहीं-कहीं तो चुनावी रंजिश खूनी होली का रूप ले लेती है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद बिना किसी विवि से ली गई डिग्री जैसे उनके नाम के आगे राजनीतिक लग जाता है। ये सभी राजनीतिक दल अपनी चाणक्य नीति खुद ही बनाते हैं और उस कहावत को सच साबित करते हैं चोर-चोर मौसेरे भाई। इसका जीता जागता उदाहरण है हाल में मजबूत आरटीआई (जनसूचना का अधिकार) का राजनीतिक दलों को रास ना आना, दागी राजनीतिज्ञों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था और तीसरा बिंदु जो कि जनमानस से जुड़ा हुआ है रिटायरमेंट और शैक्षिक योग्यता का होना।
ये देश की कितनी बड़ी मजबूरी है कि एक और जहां सरकारी बाबू की नौकरी के लिए उम्र व शैक्षिक योग्यता तय है, वहीं उसकी रिटायरमेंट की आयु 60 साल निर्धारित की गई है। दूसरी ओर वे राजनीतिज्ञ हैं, जो कि जितने बड़े धांधलेबाज और जितना बड़ा गुंडा है, वो उतनी ही दबगई से अपनी बात रख सकता है। ऐसे राजनेता ही तमाम अनैतिक कार्यों से पैसा कमाकर खर्च करने में माहिर हैं और राजनीति के शिखर पर पहुंचते हैं। देशप्रेम की भावना और ज्ञान इस नई व्यवस्था में कहीं खो से गए हैं। ये समझ से परे है कि जो लोग अनपढ़ हैं, वो देश चला रहे हैं। ये देश की कैसे विडांना है। एक ओर तो वो एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे हैं। वहीं जा राजनीतिज्ञों के अस्तित्व पर आंच कीाात आती है तो सभी दल एकजुट हो जाते हैं। चाहे वो आरटीआई या दागियों को टिकट दिए जाने कीाात हो। आपको इनकी मानसिकता इसीाात से समझ आ सकती है कि वो देश की सासेाड़ी पंचायत सुप्रीम कोर्ट से भी निाटने में एकजुट हो गए हैं। इनकी मानसिकता, इनके द्वारा की गई करतूत और कालाधन आरटीआई के माध्यम से जनता के सामने ना आ जाए, इसके लिए भी भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में जो जनता है वो अपने साथ किए जा रहे दुव्र्यवहार को कैसे रोक पाएगी कि जा हाल में ही आरटीआई जैसा सशक्त हथियार उसके हाथ में आया था और सुप्रीम कोर्ट के फैसले जो कि जनता के लिए नजीरानते हैं और सरकार जा अपनी ही न्यायपालिका के फैसले पलटेगी, ता हमारे देश और इसकी जनता का क्या हाल होगा। ये स्थिति मनन करने से ही शरीर कांप उठता है।
ऐसे समय पर जो आज के दिन सोशल मीडिया काोलााला है, या जो सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उनकी भी ये जिम्मेदारी है कि सरकार और राजनीतिक दलों की ये मंशा पूरी ना होने दें। चौथा स्तंभ कहे जाने वाले प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से जनता को जगाया जाए और सरकार द्वारा अपने पक्ष मेंानाए जा रहे इस कानून को जनता से भी ज्यादा सरकार पर सख्ती से लागू किया जाए।
देखिए देश की जनता का ये कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि जो पक्ष-विपक्ष के लोग सदन में एक-दूसरे के कपड़े उतारने में जरा भी नहीं हिचकते हैं और मर्यादा शब्द की तौहीन करते हुए अनर्गल शब्दों का जमकर इस्तेमाल करते हैं। हर 15-20 दिन में ही एकाध आदमी जूता फेंकते या मारपीट करता हुआ मिल जाता है। कहीं-कहीं तो चुनावी रंजिश खूनी होली का रूप ले लेती है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद बिना किसी विवि से ली गई डिग्री जैसे उनके नाम के आगे राजनीतिक लग जाता है। ये सभी राजनीतिक दल अपनी चाणक्य नीति खुद ही बनाते हैं और उस कहावत को सच साबित करते हैं चोर-चोर मौसेरे भाई। इसका जीता जागता उदाहरण है हाल में मजबूत आरटीआई (जनसूचना का अधिकार) का राजनीतिक दलों को रास ना आना, दागी राजनीतिज्ञों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था और तीसरा बिंदु जो कि जनमानस से जुड़ा हुआ है रिटायरमेंट और शैक्षिक योग्यता का होना।
ये देश की कितनी बड़ी मजबूरी है कि एक और जहां सरकारी बाबू की नौकरी के लिए उम्र व शैक्षिक योग्यता तय है, वहीं उसकी रिटायरमेंट की आयु 60 साल निर्धारित की गई है। दूसरी ओर वे राजनीतिज्ञ हैं, जो कि जितने बड़े धांधलेबाज और जितना बड़ा गुंडा है, वो उतनी ही दबगई से अपनी बात रख सकता है। ऐसे राजनेता ही तमाम अनैतिक कार्यों से पैसा कमाकर खर्च करने में माहिर हैं और राजनीति के शिखर पर पहुंचते हैं। देशप्रेम की भावना और ज्ञान इस नई व्यवस्था में कहीं खो से गए हैं। ये समझ से परे है कि जो लोग अनपढ़ हैं, वो देश चला रहे हैं। ये देश की कैसे विडांना है। एक ओर तो वो एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे हैं। वहीं जा राजनीतिज्ञों के अस्तित्व पर आंच कीाात आती है तो सभी दल एकजुट हो जाते हैं। चाहे वो आरटीआई या दागियों को टिकट दिए जाने कीाात हो। आपको इनकी मानसिकता इसीाात से समझ आ सकती है कि वो देश की सासेाड़ी पंचायत सुप्रीम कोर्ट से भी निाटने में एकजुट हो गए हैं। इनकी मानसिकता, इनके द्वारा की गई करतूत और कालाधन आरटीआई के माध्यम से जनता के सामने ना आ जाए, इसके लिए भी भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में जो जनता है वो अपने साथ किए जा रहे दुव्र्यवहार को कैसे रोक पाएगी कि जा हाल में ही आरटीआई जैसा सशक्त हथियार उसके हाथ में आया था और सुप्रीम कोर्ट के फैसले जो कि जनता के लिए नजीरानते हैं और सरकार जा अपनी ही न्यायपालिका के फैसले पलटेगी, ता हमारे देश और इसकी जनता का क्या हाल होगा। ये स्थिति मनन करने से ही शरीर कांप उठता है।
ऐसे समय पर जो आज के दिन सोशल मीडिया काोलााला है, या जो सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उनकी भी ये जिम्मेदारी है कि सरकार और राजनीतिक दलों की ये मंशा पूरी ना होने दें। चौथा स्तंभ कहे जाने वाले प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से जनता को जगाया जाए और सरकार द्वारा अपने पक्ष मेंानाए जा रहे इस कानून को जनता से भी ज्यादा सरकार पर सख्ती से लागू किया जाए।
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