हाल ही में जून माह में उत्तराखंड में चार धाम की यात्रा के दौरान आई दैवीय आपदा की दुखद घटना की यादें लोगों के जेहन में आज भी ताजा है। ये भारत और इसके पहाड़ी इलाकों में आई आ तक की सबसे बड़ी दुर्घटना साबित हुई है, जिसमें कि हजारों लोग काल के गाल में समा गए हों। ऐसे में एक प्रश्न उठता है कि पिछले 10 सालों में दिन-प्रतिदिन इस तरह की घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है। अगर विश्व पटल पर गौर करें तो ऐसी अनेक प्राकृतिक घटनाएं, जिनसे की अपार जनहानि व संपत्ति का नुकसान हुआ है और संबंधित देश व शहर को उससे निबटने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी हो।
एक ओर पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर सरकारें, स्वयंसेवी संगठन व लोग परेशान हैं। इससे लड़ने व इस समस्या से उबरने के लिए तमाम तरह के उपाय हो रहे हैं, लेकिन ये सभी उपाय ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। हकीकत में देखा जाए तो इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं व ग्लोबल वार्मिंग से निबटने के लिए कोई भी ठोस कदम सही तरीके से हम नहीं उठा रहे हैं।
दूसरी ओर जिस तेजी से हम प्राकृतिक संपदाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं या उनका दोहन या हनन कर रहे हैं उससे ये समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल रूप ले रही है। जिस तरीके से आज जंगलों को काटकर शहर बनाए जा रहे हैं और शहरों का औद्योगिकीकरण हो रहा है और नहर-नदियों से जिस तरीके से बालू और रेती का खनन किया जा रहा है या नहरों के पानी का दोहन हो रहा है। इन सबसे जो प्राकृतिक अंसतुलन बिगड़ रहा है। हमारे शहर, राज्य या देश में जो रमणीय स्थल थे, जहां कि खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में हैं, चाहे वो पेड़, पहाड़ या अन्य किसी रूप में हों। वे सा तेजी से खत्म होते जा रहे हैं। इन प्राकृतिक आपदाओं के मूल में यही सब कारण हैं। औद्योगिकीकरण और विकास की दौड़ में हम अगर इन प्राकृतिक संपदाओं को नहीं बचाएंगे तो वो दिन दूर नहीं कि जब ये प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं के चलते हम रेगिस्तान में रहने को मजबूर हो जाएं। ऐसे समय में सरकार के साथ साथ प्रत्येक नागरिक का ये कत्र्तव्य है कि वो खुद के लिए ना सही, आने वाली जनरेशन के लिए चारों ओर से इसको बचाने और बढ़ाने का प्रयास करे। इसमें जो आम नागरिक हैं, वे भी अपनी ओर से प्रयास कर सकते हैं। उसमें पेड़ों की कटाई पर सख्ती से रोक लगे और ज्यादा जरूरत होने पर ही पेड़ काटे जाएं, ऐसा प्रावधान हो। साथ ही एक पेड़ के काटे जाने की एवज में दो पेड़ लगाए जाएं। वहीं अपने मकान या रहन-सहन को पर्यावरण से प्रेरित करने के साथ ही आम जीवन में प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग किया जाए। साथ ही पॉलिथीन जैसी दुष्प्रभावी चीजों पर रोक लगाई जाए एवं आवश्यकता होने पर ही जल का इस्तेमाल किया जाए ना कि उसका अंधाधुंध दोहन। साथ ही वे पशु-पक्षी, जिनका कि पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण स्थान है, उन्हें बचाने के उपाय किए जाएं, क्योंकि हर पशु-पक्षी हमें कुछ ना कुछ देते ही हैं, जैसे कि मुर्गी हमें अंडे और गाय-भैंस दूध-दही देती हैं। अत: हमारे आसपास के पशु-पक्षियों को बचाने के उपाय भी हमें सोचने होंगे।
कहने का अर्थ ये है कि अगर हम प्रकृति के साथ गैर जिम्मेदाराना व्यवहार रखेंगे तो आने वाले समय में कहीं मनुष्य ही मनुष्य को खाने के लिए नहीं दौड़ने लगे। ऐसे समय में ही पर्यावरण प्रेमी जीवनदायिनी का काम कर सकते हैं।
एक ओर पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर सरकारें, स्वयंसेवी संगठन व लोग परेशान हैं। इससे लड़ने व इस समस्या से उबरने के लिए तमाम तरह के उपाय हो रहे हैं, लेकिन ये सभी उपाय ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। हकीकत में देखा जाए तो इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं व ग्लोबल वार्मिंग से निबटने के लिए कोई भी ठोस कदम सही तरीके से हम नहीं उठा रहे हैं।
दूसरी ओर जिस तेजी से हम प्राकृतिक संपदाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं या उनका दोहन या हनन कर रहे हैं उससे ये समस्या दिन-प्रतिदिन विकराल रूप ले रही है। जिस तरीके से आज जंगलों को काटकर शहर बनाए जा रहे हैं और शहरों का औद्योगिकीकरण हो रहा है और नहर-नदियों से जिस तरीके से बालू और रेती का खनन किया जा रहा है या नहरों के पानी का दोहन हो रहा है। इन सबसे जो प्राकृतिक अंसतुलन बिगड़ रहा है। हमारे शहर, राज्य या देश में जो रमणीय स्थल थे, जहां कि खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में हैं, चाहे वो पेड़, पहाड़ या अन्य किसी रूप में हों। वे सा तेजी से खत्म होते जा रहे हैं। इन प्राकृतिक आपदाओं के मूल में यही सब कारण हैं। औद्योगिकीकरण और विकास की दौड़ में हम अगर इन प्राकृतिक संपदाओं को नहीं बचाएंगे तो वो दिन दूर नहीं कि जब ये प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं के चलते हम रेगिस्तान में रहने को मजबूर हो जाएं। ऐसे समय में सरकार के साथ साथ प्रत्येक नागरिक का ये कत्र्तव्य है कि वो खुद के लिए ना सही, आने वाली जनरेशन के लिए चारों ओर से इसको बचाने और बढ़ाने का प्रयास करे। इसमें जो आम नागरिक हैं, वे भी अपनी ओर से प्रयास कर सकते हैं। उसमें पेड़ों की कटाई पर सख्ती से रोक लगे और ज्यादा जरूरत होने पर ही पेड़ काटे जाएं, ऐसा प्रावधान हो। साथ ही एक पेड़ के काटे जाने की एवज में दो पेड़ लगाए जाएं। वहीं अपने मकान या रहन-सहन को पर्यावरण से प्रेरित करने के साथ ही आम जीवन में प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग किया जाए। साथ ही पॉलिथीन जैसी दुष्प्रभावी चीजों पर रोक लगाई जाए एवं आवश्यकता होने पर ही जल का इस्तेमाल किया जाए ना कि उसका अंधाधुंध दोहन। साथ ही वे पशु-पक्षी, जिनका कि पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण स्थान है, उन्हें बचाने के उपाय किए जाएं, क्योंकि हर पशु-पक्षी हमें कुछ ना कुछ देते ही हैं, जैसे कि मुर्गी हमें अंडे और गाय-भैंस दूध-दही देती हैं। अत: हमारे आसपास के पशु-पक्षियों को बचाने के उपाय भी हमें सोचने होंगे।
कहने का अर्थ ये है कि अगर हम प्रकृति के साथ गैर जिम्मेदाराना व्यवहार रखेंगे तो आने वाले समय में कहीं मनुष्य ही मनुष्य को खाने के लिए नहीं दौड़ने लगे। ऐसे समय में ही पर्यावरण प्रेमी जीवनदायिनी का काम कर सकते हैं।
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