सोमवार, 5 अगस्त 2013

आज दोस्ती में दिख रहा बनावटीपन






सुदामा कृष्ण की दोस्ती की मिसाल आज भी साहित्य  और धर्म के ग्रंथों में कैद है, जो ये बताती है कि  दोस्ती की कोई सीमा नहीं होती। वो किसी भी धर्म, जाति,देश और आर्थिक असमानताओं की बेड़ियों को तोड़कर मन के मिलन पर होती है. उसमें बौद्धिक क्षमता        का भी कहीं कोई ओर छोर  नहीं होता है. दरअसल मानव जाति  विकासशील प्रवत्ति की है और सदियों से ही इसका धीरे धीरे विकास होता रहा है, जिसमे कि १ पुरानी परम्पराएँ और व्यस्थाएं बदलती रहती हैं।  अगर हम पुराने ज़माने (बाप-दादा या उससे भी पहले ) की बात करें तो उस समय के आज भी कई ऐसे उदहारण मिल जायेंगे जिनमे कि दो   अलग अलग मान्यता और आर्थिक असमानता और बौद्धिक क्षमता के लोग आज भी उनकी उस दोस्ती का निर्वहन करते दिख जाएंगे। मैं ऐसे कई परिवार के लोगों को जानता हूँ कि  जो आज वरिष्ट नागरिक हैं, उनके बाप दादाओं ने उन लोगों की खूब आर्थिक मदद की और वो मददगार परिवार  आज आगरे का नामी परिवार है. ऐसे कई लोगों को मैं जानता हूँ जिनकी कि दोस्ती को आज 50 साल हो गये हैं. इनमें से कई ऐसे भी हैं जिनकी की दोस्ती  आगरा से बाहर रहने पर भी अक मिसाल है।  सबसे बड़ी बात ये है कि  पैसे और पद की विषमता के बाद भी वो अपनी दोस्ती और दोस्त को सार्वजनिक रूप से मिलवाते हैं और अपने दोस्त को स्वीकार करते हैं.
आज आर्थिक उन्नति और शैक्षिक  द्रष्टि से इस सभ्यता ने एक  नया मोड़ ले लिया है. अब दोस्ती का पहलू उसका बौद्धिक या आर्थिक स्तर, पद या समाज में स्थान, दोस्त बनने  लायक है या नहीं, ये सारी बातें तय करती है. दोस्ती जो कि  एक  ज़माने  में गंगाजल की तरह पवित्र हुआ करती थी उसमें आज कहीं न कहीं स्वार्थ रूपी कीड़ा घुस गया है. दो दशकों से तो दोस्ती की परिभाषा ने ऐसी करवट बदली है कि आज सुदामा और कृष्ण भी ये कहने से गुरेज नहीं करते होंगे कि  देखो आज दोस्त के रूप में  आस्तीन के सांप पल रहे हैं. क्योंकि अब बौधिक और आर्थिक पद की समानता को स्वार्थ ने पीछे छोड़ दिया है. अब दोस्ती केवल मतलब की ही रह गयी है. 
आज के संचार के युग में एक  रूप में  और दोस्ती के मायने बदल गए हैं  जिसे कि  आज फेसबुक फ्रेंड के रूप में  जाना जाता है. आज फेसबुक पर दोस्ती कम और अपने आपको ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपना प्रभाव जमाना और दोस्तों  की संख्या बढ़ाना है, फिर चाहे उसके लिए उलजुलूल    बातें या  अपने परिवार की निजी बातों को भी फेसबुक पर डालने से लोगों को कोई गुरेज नहीं है और ऐसे लोग बड़े गर्व से कहते हैं की फलां मेरा     दोस्त है. दोस्ती का मतलब होता है कि  दोस्त की मन और आत्मा से जुड़ना। फेसबुक पर जुड़ना या अन्य किसी संचार माध्यम से जुड़ना या अपने मतलब के लिए दोस्ती गांठना मित्रता नहीं कहलाता। किसी ने सुच ही कहा है कि  हे इश्वर मुझे दोस्तों की फ़ौज मत दे बल्कि एक  ही ऐसा दोस्त दे जो  कि  पूरी फ़ौज के बराबर हो. इसलिए   फ्रेंडशिप डे के मौके पर सभी दोस्तों और पाठकों से कहना चाहता हूँ कि  अगर आपका दिल मेरे रहन-सहन, आर्थिक बौद्धिक स्तर की जगह मन और आत्मा से मिलता है तो आप मुझसे दोस्ती रखें और दोस्ती को मैं अपने मरने के बाद भी जीवित रखूँगा।                                                                                                          दोस्ती का असली आनंद दोस्ती के बीच हंसी ठिठोली में  ही है और एक  व्यक्ति अपने मित्र से दिल की बात कहकर अपने मन को हल्का कर लेता है, लेकिन आज ऐसा बहुत कम हो रहा है और इसी चलते आज कई बार     आदमी dipresion में  चला जाता है।
















                        

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