शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

सुनहरे भविष्य पर भारी रैगिंग का भूत


बड़ी उमंग और जोश के साथ आज का युवा अपने मनपसंद कोर्स और पढ़ाई के लिए गांव से शहर और शहर से महानगर जाता है। वहां वह भविष्य सुनहरा बनाने के लिए कॉलेज में प्रवेश लेता है। मां-बाप भी अपने सुनहरे भविष्य के सपने बुनते हुए कर्ज लेकर भी बच्चे को पढ़ने के लिए भेजते हैं। बाहर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान आवासीय सुविधा के लिए बच्चा हॉस्टल में रहता है। बड़े ही अफसोस की बात है कि वहां उसका सामना रैगिंग से होता है।
गांव से शहर गया युवा जब रैगिंग की प्रताड़ना से गुजरता है तो उसके मन में एक डर की भावना बैठ जाती है। किसी समय में कॉलेज में रैंगिग का अर्थ होता था आपस में मेल-मुलाकात, एक-दूसरे से जान-पहचान बढ़ाना और एक-दूसरे की छिपी प्रतिभा को उभारने व जानने का अवसर देना। एक जमाने में हर शहर के स्कूल-कॉलेजों में ऐसा होता था। रैगिंग की ये परंपरा सभी विश्वविद्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों का अभिन्न अंग रही है। इसके माध्यम से हम अपनी जान-पहचान व भाईचारा बढ़ाते थे। धीरे-धीरे खुद को सुपरमैन दिखाने की होड़ में इस परंपरा का स्वरूप ही बिगड़ता चला गया। आज नए स्वरूप में भौंडेपन की और अश्लीलता की पराकाष्ठा पार कर गई है। किसी समय सीनियर्स को बड़े भाई- बहन के रूप में सम्मान दिया जाता था, लेकिन अब स्कूल-कॉलेज में जूनियर्स उनसे ऐसे बचते हैं कि जैसे कोई टिड्डियों का दल आ गया हो और मैं क्या कहूं अब तो ऐसी भयंकर घटनाएं आए दिन अखबारों के आगे के पन्नों की सुर्खियां बनती हैं। वहीं न्यूज चैनल के प्राइम टाइम में भी देश का प्रबुद्ध वर्ग इस पर लंबी चौड़ी बहस करके खुद को ज्ञानी साबित करने का दिखावा करता है।
कर्ज लेकर मां-बाप द्वारा पढ़ाई के लिएा बाहर भेजा गया बच्चा जब रैगिंग का शिकार होने के बाद आत्महत्या के लिए मजबूर होता है और जान दे देता है तो पीड़ित परिवार की मनोस्थिति की कल्पना करने में ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उस परिवार के मित्र व सगे-संबंधी भी अपने बच्चों के प्रति आशंकित होने के साथ ही दुविधा में पड़ जाते हैं। ऐसे कई किस्से आपको देखने को मिल जाएंगे। परिवार के किसी परिचित के यहां भी ऐसी घटना घटी या ऐसे में वह परिवार या उसके (मृतक) दोस्त पढ़ाई से विमुख होकर घर लौट आते हैं। देखा जाए तो यह भी एक तरीके से उनके सुनहरे भविष्य की आत्महत्या ही है।
 आज को-एजुकेशन के दौर में अश्लीलता के किस्से या कहानियां मैं आपको यहां लिख नहीं सकता बस आपको याद दिला सकता हूं अथवा ध्यान आकर्षित कर सकता हूं। रैगिंग के दौरान होने वाली अश्लीलता ब़ोलीवुड की सी ग्रेड मूवी को भी पीछे छोड़ देती है।
रैगिंग का एक और पहलू है, वो ये कि जो नारी कभी लज्जा का स्वरूप मानी जाती थी। उसकी लज्जा जब तार-तार होती है और कॉलेज प्रबंधन से जुड़ी महिलाएं ही कुछ नहीं कर पाती हैं। आज नारी ने हर क्षेत्र में अपनी बराबर की भागीदारी निभाई है तो रैगिंग में वे लड़कों से कैसे पीछे रह सकती हैं। आज लड़कियों को भी रैगिंग के इतने तरीके भाते हैं कि वो उसकी कॉपी करने से भी नहीं चूकती।
यहां प्रश्न ये उठता है कि पूर्व में जो भाईचारे का स्वरूप था आज उसका इतना विकराल रूप कैसे हो गया है। अगर परिस्थितियों पर गौर किया जाए तो भारत में बढ़ती स्वतंत्रता और स्वछदंता की प्रवृत्ति, मां-बाप का बच्चों के प्रति अत्यधिक लाड-प्यार, छात्रों की मानसिक विकृत्ति और खुद को सुप्रीम दिखाने की चाहत रैगिंग रूपी दलदल के तालाब को प्रतिदिन बढ़ाती जा रही है। ऐसे में कॉलेज प्रबंधन, स्थानीय पुलिस-प्रशासन, राज्य व केंद्र की सरकारों ने इसे रोकने का खाका तो तैयार कर लिया है, लेकिन हर खाके की तरह इसका भी सख्ती से पालन ना होना या ढुलमुल रवैया होना इस पर अंकुश लगाने में असक्षम साबित हो रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट इस तरीके के रवैये को रोकने, केंद्र और राज्य सरकारों को कड़ाई से कानून लागू करने का आदेश दे चुका है।
आज सबसे पहले कॉलेज प्रशासन को ही इस पर सख्ती बरतनी चाहिए, लेकिन सबसे ज्यादा निष्क्रियता वहीं पर दिखती है। गौर फरमाया जाए तो अपनी दिनचर्या में तमाम कॉलेज प्रशासन इतने मशरूफ है कि कॉलेज का अनुशासन सुधारने की ओर उसका कोई ध्यान ही नहीं है। अगर इसे सुधारने का प्रयास भी किया जाता है तो छात्र कॉलेज के खिलाफ प्रदर्शन पर उतर आते हैं। इस दौरान अगर एकाध गांधीजी जैसा व्यक्तित्व आता भी है उन्हें समझाने के लिए तो उसे छात्रों द्वारा इतनी यातना दी जाती है कि वो तुरंत अपने कदम पीछे खींच लेता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पुलिस-प्रशासन से उसे कोई सहयोग नहीं मिलता है। आज रैगिंग रोकने के लिए बनाई गई हेल्पलाइन ही हेल्पलैस साबित हो रही है क्योंकि इस तरीके का कोई भी किस्सा सामने आने पर कॉलेज वाले उसे हरसंभव दबाने का प्रयास करते हैं, ताकि कहीं मीडिया में ये मामला उछलने पर उस कॉलेज का नाम बदनाम ना हो जाए। इसलिए कॉलेज छात्रों पर ये दबाव बनाता है कि वो रैगिंग के खिलाफ कुछ नहीं बोलें।
हाल ही में आगरा के एक नामचीन स्कूल में रैगिंग से हटकर एक मामला दिखा, जो कि साफ तौर पर ये बताता है कि दादागीरी प्रतिभा पर कैसे भारी पड़ती है और इस किस्से को दबाने के लिए पीड़ित परिवार पर ही दबाव बनाया गया। एक ओर तो हम मानवता की दुहाई और मानवाधिकारों की बात करते हैं और शिक्षा को मानव का ताज मानते हैं तो दूसरी ओर इस तरह की घिनौनी हरकत से किसी परिवार के सुनहरे भविष्य का ही नहीं, अपितु देश की उभरती हुई प्रतिभाओं का भी गला घोंट रहे हैं।
अत: आज पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ दोस्ती का व्यवहार रखकर उनके साथ होने वाली हर गलत घटना के प्रति आवाज उठानी होगी। वहीं कॉलेज प्रबंधन को भी चौकन्ना होकर रैगिंग को सख्ती से रोकने की व्यवस्था करनी होगी। ऐसा होने पर कॉलेज का नाम खराब होने की जगह चमकेगा और अभिभावकों के मन में कॉलेज के प्रति सकारात्मक प्रभाव भी जमेगा।

1 टिप्पणी:

  1. आप के इस लेख को पढ़ के अच्छा लगा| रैगिंग आज की एक बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है| रैगिंग तो अब छात्रों की जानें तक ले रही है| और सरकार और कालिज प्रबंधन इसे रोकने के लिए कुछ एन्टी रैगिंग कमिटी जैसे कुछ औपचारिकताएँ ही कर रही है बस, उसके आगे कुछ नहीं| आप अगर बुरा ना मानें तो मैं चाहूँगा कि मैं आपके इस लिखे हुए निबन्ध को अपने ब्लॉग https://theraggingwatch.wordpress.com/ पे पोस्ट करूँ (आपके ब्लॉग के URL सहित)

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