कल का दिन भारतीयों के लिए काफी महत्वपूर्ण दिन था। दरअसल, 15 अगस्त के ही दिन हम भारतवासी गुलामी की बेड़ियां तोड़कर आजाद हुए थे। इस आजादी को पाने में हमारे पूर्वजों का जो योगदान है वो कभी भी ना तो भुलाया जा सकता है और ना ही चुकाया जा सकता है। इस ऐतिहासिक घटना को तो इतिहास के पन्नों में पढ़कर केवल महसूस ही किया जा सकता है। हमारे पूर्वजों के त्याग की अगर कल्पना की जाए तो उस जमाने में उन्होंने सीमित संसाधनों में आजादी की लड़ाई लड़ी थी। आज के परिवेश में जहां विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है और बहुत सारी सुविधाएं और साधन दिए हैं, उन सबकी तो उस जमाने में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। यहां रामायण की एक चौपाई का जिक्र करना जरूरी है कि राम-रावण युद्ध में सत्य की लड़ाई के लिए रामचंद्रजी ने जमीन से ही लड़ाई लड़ी थी। आज आजाद भारत में हम भारतीय स्वतंत्र लोकतंत्र में रह रहे हैं और आज हम सभी भारतीय उस आजादी का उत्सव जगह-जगह पर अपने तरीके से मनाते हैं। हमें ये विचार करना होगा कि हमने अंगे्रजों से तो आजादी पा ली, लेकिन क्या हम आजाद हैं। हमें लगता है कि पंद्रह अगस्त के दिन को हम खाली आजादी का पर्व मनाने की एक रस्म की तरह ही मना रहे हैं, जबकि ना तो हम अभी तक आजादी के मायने समझ पाए हैं और जिस तरीके से हमारे देश में लोकतंत्र का मजाक बनाया जा रहा है। उससे हम लोगों को सोचना होगा कि क्या हम कुएं से निकलकर खाई में तो नहीं गिर गए हैं। इस के कई कारण है, जिनमें आज हमारे देश में जो आतंकवाद का साया, पड़ौसी देशों का खौफ, अर्थव्यवस्था का दिन-प्रतिदिन कमजोर होना और कृषि प्रधान देश होते हुए भी खाद्यान्न के लिए दूसरे देशों के सामने हाथ फैलाना और अपने देश में दूसरे देशों को व्यापार के लिए आमंत्रण देना, राजनीतिक दलों द्वारा भ्रष्टाचार करके देश को खोखला करना तथा बेरोजगारी के ग्राफ में निरंतर इजाफा आदि हैं।
ऐसे समय में हमें लगता है कि हम अंग्रेजों से तो आजाद हो गए, लेकिन अपने ही लोगों द्वारा पराधीन तो नहीं होते जा रहे हैं। आज जहां भारत विश्व में अपनी पहचान रखता है। आजादी के बाद लालबहादुर शास्त्री जैसे नेताओं ने विश्व में भारत का सिर गर्व से ऊंचा किया था और हमारा देश विकासशील देशों की श्रेणी में दिन-प्रतिदिन तरक्की कर रहा था। आज भी हमारी फौज दुनिया की दूसरे नंबर की फौज है, तो अर्थव्यवस्था के मामले में हम चौथे नंबर पर हैं। मजबूत लोकतंत्र और मानव संसाधन के मामले में किसी से कमजोर ना होते हुए भी हमारे कई भाई-बहन आज हम हमेशा डर के साए में जीते हैं। अपने ही सिपाहियों को सरहद पर शहीद होते हुए बेबसी के साथ देखते हैं। मुझे एक कहावत याद आती है कि
मेरे घर को मेरे ही चिराग ने आग लगा दी।इसके अर्थस्वरूप आपको समझ आएगा कि हमारे ही नेता कभी धर्म, जाति, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, अपनी तानाशाही के बहाने अपने देश को दीमक की भांति खोखला करने में लगे हैं। ऐसे में स्वतंत्रता दिवस को मात्र रस्म अदायगी की तरह मनाना मुझे ऐसा लगता है कि जब तक शैक्षिक बौद्धिक स्तर पर हम इसका चिंतन नहीं करेंगे और लोकतंत्र में रहते हुए इसके लिए आवाज नहीं उठाएंगे तो ये मात्र एक रस्म अदायगी ही रह जाएगी और कहीं फिर हम अपने ही नेताओं या किसी अन्य राष्ट्र की गुलामी के शिकार ना हो जाएं।
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