बुधवार, 14 अगस्त 2013

सोशल मीडिया या कीचड़ उछालने वाला मीडिया





देश में आगामी लोकसभा चुनाव जल्द ही होने वाले हैं और देशभर में राजनीतिक दल और उनके कार्यकर्ताओं की गतिविधियां बढ़ती ही चली जा रही हैं। वहीं आम आदमी की दिलचस्पी अखबारों और न्यूज चैनलों में खबरें देखने और पढ़ने में बढ़ती जा रही है। आज ड्राइंग रूम में होने वाला डिस्कशन वहां से निकलकर पार्टियों और पान की दुकान तक पहुंच गया है।  ऐसे में एक युवा वर्ग देश में ऐसा है कि जिसे राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन ट्वीटर और फेसबुक पर वह हमेशा खोया रहता है। साथ ही कई नेताओं के समर्थक फर्जी आईडी से सोशल मीडिया पर अपने नेताओं का महिमा मंडन करते हैं।  फेसबुक पर दूसरे युवा उनके आर्टिकलों और कार्टून को देखकर मजाक बनाते हैं और देश के राजनीतिज्ञों के प्रति अच्छी छवि नहीं बना पाते हैं। सबसे खराब बात ये है कि एक-दूसरे के प्रति अशोभनीय बातें भी सोशल मीडिया द्वारा पेश की गई होती हैं। उसमें आज हर पाठक वर्ग की राजनीति के प्रति गंदी व स्वार्थी सोच बन गई है। आज हर राजनीतिक दल चाहे वो छोटा है या बड़ा सोशल मीडिया को एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है, लेकिन यहां सोचने वाली बात ये है कि कौन जनता ऐसी है जो कि वोट देकर सरकार चुनती है और कौन वो लोग हैं, जो कि पान की दुकान या गांव की चौपाल पर चर्चा करके खुद को और राजनीतिक दलों को कोसते हैं। अगर आजकल के चुनाव में डलने वाले वोटों का मत प्रतिशत और जीत का अंतर देखें तो पता चलेगा कि जिन लोगों ने अपने प्रत्याशी को जिताया है उनके पास कंप्यूटर तो दूर एक 15 रुपये का पेन भी नहीं होगा। दिनभर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद वे 2 जून की रोटी कमा पाते हैं और अपना व अपने परिवार का पेट भर पाते हैं। ऐसे समय में सोशल मीडिया का यूज करने वाला वर्ग तब तक मतदान के प्रति उत्साहित नहीं होगा जब तक कि सोशल मीडिया प्रचार का माध्यम नहीं बन जाता। सही मायने में तो इसे कीचड़ उछालने वाला मीडिया कहा जाना चाहिए। जो व्यक्ति जिस नेता या पार्टी से प्रभावित होता है वही उस नेता या पार्टी का गुणगान करता है और दूसरे दलों को चोर बताने से भी नहीं चूकता है। अगर उस आदमी के बारे में आप जानकारी लेना चाहें तो वो हंसते हुए यही कहेगा कि गुरु कार्टून बहुत अच्छा था, मजा आ गया। यकीन मानिए ऐसा वोटर तारीफ मोदी की करता है और वोट कांग्रेस को देता है।
ऐसे में फिर एक प्रश्न उठता है कि क्या गली-मोहल्ले, पान की दुकानों या चौपालों से उठकर कहीं चुनावी चर्चा (राजनीतिक गलियारों की बातें) फेसबुक पर तो नहीं आ गई। देखने पर तो यही लगता है कि ऐसा ही हो रहा है। ऐसे में चिंतन की बात ये है कि जो विवेकशील लोग हैं, उनकी चेतना व चिंतन कहीं और ना खो जाए क्योंकि आज समाज से इन लोगों का कटाव भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में मीडिया के साथ सच्चे चिंतनशील लोग जो कि धरातल पर रहकर राजनीति में बदलाव और देश का उत्थान चाहते हैं तो सोशल मीडिया को चुुटकुलों का खजाना ना मानते हुए इसे दुधारी तलवार के रूप में स्थापित कर इसका इस्तेमाल करना चाहिए। पढ़ा लिखा और विवेकशील व्यक्ति अगर वो अपनी औकात में आ जाए और अपने विवेक का इस्तेमाल करे तो देश की दिशा और दशा बदल सकता है।
अत: हमारा मानना है कि फेसबुक पर मनमोहन, राहुल और मोदी जैसे लोगों को उपहास का पात्र ना मानते हुए उसकी जगह पर अपने सही विचारों व सच्चे मन से देशहित में अपनी बात समाज में पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए, साथ ही इस बात की भी तैयारी करनी चाहिए कि अगर हम वोट नहीं देते हैं तो किसी पर कीचड़ उछालने या देश का भाग्य कोसने का हमें कोई अधिकार नहीं है।

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