बुधवार, 14 अगस्त 2013

भेड़ों की भीड़ में कहां है आदमी

वाह रे सोशल साइट फेसबुक, ट्विटर और इन जैसी दूसरी अन्य साइटें। ये साइटें लोगों को स्मार्ट बनाने के साथ ही खबरों व सूचनाओं से हर पल अपडेट रख रही हैं। वहीं इनका एक दूसरा साइड इफेक्ट भी है कि ये परिवार का बजट बिगाड़ने के साथ ही कई युवाओं को अपराध के दलदल में धकेल रही हैं, क्योंकि गर्लफ्रेंड को खुश रखने और उसे महंगे-महंगे तोहफे देने के लिए कई युवा अपराध की राह चुन रहे हैं। तमाम कंपनियों के स्मार्टफोन और नित नए बाजार में आए रहे एप्लीकेशन व सॉफ्टवेयर के कई लोग इतने दीवाने हो गए हैं कि वो अपना सब काम और कारोबार आदि छोड़कर इनसे ही चिपके रहते हैं। आजकल ही ये खबर कहीं पर पढ़ी है कि स्मार्टफोन की बिक्री  ने बेसिक फोन को भी पीछे छोड़ दिया है। शायद ऐसा इसी चलते हुआ है।
वहीं एक दूसरा चलन और शुरू हुआ है कि कई अज्ञानी फेसबुक पर कमेंट लिखकर अपने अ‘ज्ञान’ का बखान करते हैं और कई ज्ञानी उसे पढ़कर अज्ञानी के ज्ञान का आनंद लेते हैं। बड़े ही मजे की बात है कि फेसबुक यूज करने वाले 90 फीसदी लोग, जो कि किसी भी विषय पर लिखते हैं या जिस भी टॉपिक को लाइक करते हैं, उसकी उन्हें मूलभूत जानकारी ही नहीं होती है। कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा कहावत के मुताबिक कट और पेस्ट से वो अपने आपको समय-समय पर राष्ट्रभक्त, पर्यावरण प्रेमी, साहित्यकार, धर्मगुरु, डॉक्टर, वकील और ना जाने क्या-क्या खुद को साबित करने की कोशिश करते हैं। यहां पर भी वही बात आती है कि शेर की खाल पहन लेने मात्र से ही कोई भेड़िया शेर नहीं बन जाता।
आज अगर फेसबुक पर तमाम लोग अपनी प्रोफाइल पर 15 अगस्त को राष्ट्रध्वज की तस्वीर या भारत माता की फोटो को अपना सलाम या कमेंट नहीं करते हैं तो ऐसा लगता है कि वो शायद राष्ट्र से प्यार ही नहीं करते। वहीं हकीकत ये है कि अगर इन तमाम लोगों से ध्वज के रंग, उसके महत्व अथवा गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस का मतलब पूछेंगे तो वो इस बारे में बता ही नहीं पाएंगे। अगर इस बारे में सर्वे भी कराया जाए तो मालूम चल जाएगा कि आज देशभक्ति एक हद तक सोशल साइट पर अच्छी डिजाइन वाले फोटो में अपना फोटो लगाकर चिपका देने और उस पर कमेंट या लाइक पाने तक ही है।
बड़ा ताज्जुब तो तब होता है कि जा कुछ लोग जिन्हें कि राजनीति की एबीसीडी भी पता ना हो और वो किसी विश्लेषक की भांति अपनी राय फेसबुक पर लिख देते हैं। ऐसा ही हाल फिल्मों की रिलीज के समय होता है कि जा भाग मिल्खा भाग, चेन्नई एक्सप्रेस या कोई दूसरी ब्लॉकबस्टर मूवी आती है तो फेसबुक फिल्म से संबंधित पोस्ट या कमेंट से पट जाता है। फिल्म के बारे में ऐसा समझ में आता है कि लोगों ने फिल्म देखकर अपनी राय दी होगी, लेकिन सबसे ताज्जुब की बात तो ये है कि संसद की कार्यवाही, या किसी शहर में बलात्कार की घटना, पर्यावरण से संबंधित कोई कार्यक्रम या अन्य कोई आयोजन, इन सभी के लिए फेसबुकिए ठेकेदार ज्ञानी व समाजसेवी बनते नजर आते हैं और अपना ज्ञान बघारते हैं।
एका बात और मैंने गौर फरमाई है कि हरियाली तीज के समय फेसबुक पर झूले और मेंहदी, ईद पर गले मिलने व नमाज पढ़ने, सेवइयां खाने और सिस्टर्स डे वाले दिन सभी लड़कियों को बहन मानने के प्रवचन फेसबुक पर होते हैं। ऐसा करने वालों में से बहुत से लोग मुंह में राम औरागल में छुरी प्रवृत्ति वाले होते हैं। कुछ भी कहिए। कई लोग इस अंधी दौड़ में भीड़ की तरह गड्ढे में गिरते हैं तो कई लोग दूसरे धर्म, जाति, देश, अर्थव्यवस्था आदि का संकलन कर अपने ज्ञान में वृद्धि करते हैं और तो और फेसबुक भी बड़ी ही अनोखी चीज है। आदमी अपने जीवन से जुड़ी छोटी से छोटी उपलधि को भी प्रचार करने के लिए फेसाबुक पर अपलोड कर देता है। आज फेसबुक के चलते लोगों में खुद को पॉपुलर करने की इतनी गजब की भूख बढ़ गई है कि ऊपर वाले पोस्ट के तरीकों के अलावा कुछ लोग तो उलूल-जूलूल बातों व पारिवारिक बातों को भी पोस्ट करने से गुरेज नहीं करते। मेरा मानना है कि एक आदमी के फेसबुक पर तीन आईडी होने चाहिए। इसमें पहले वाले आईडी में उसके फैमिली के सदस्य हों, दूसरे में समाज के लोग व अन्य लोग हों और तीसरी आईडी से उसके निजी वालसखा जुड़े हों, जिनसे कि वो अपनी गोपनीय व निजी बातें शेयर कर सके।
आजा बात चाहे देश की वर्तमान स्थिति, स्वतंत्रता दिवस, दुर्गाशक्ति के निलबन की हो। अगर हम उसे खाली फेसबुक की कमेंट ना मानें और खुद को देश का जिम्मेदार नागरिक मानते हुए उस पर गंभीर व सटीक प्रतिक्रिया जाहिर करें और संपूर्ण भारत में सालभर में मनाए जाने वाले विविध उत्सवों व त्योहारों के महत्व को समझते हुए दोस्तों व दूसरों की प्रोफाइल पर कमेंट करें तो ये सोशल साइट शायद ज्ञान का भंडार साबित होंगी और साथ ही उससे हमारा उपहास उड़ने से बच सकता है।

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