देश की वर्तमान अर्थव्यवस्था में अगर आज हर व्यापार की ग्रोथ में दिन-प्रतिदिन कमी नहीं आई है तो उसमें इजाफा भी नहीं हुआ है। आज आए दिन कारोबार को नई-नई समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। हम भी अपने व्यापार की परेशानियों में उलझे थे कि राखी के दिन व्यापार थोड़ा ठंडा होने से हमने बाजार में व्यापारियों की एक चौपाल लगा दी। पूरी चौपाल के दौरान व्यापार की तरक्की के कई सुझाव आए। यकायक आए एक सुझाव पर तो सभी ने एकमत से सहमति में सिर हिलाया। साथ ही इस दौरान हास-परिहास का भी परिदृश्य उभर गया। ऐसा बहुत कम होता है कि स्वार्थी व्यापारी वर्ग किसी एक बात पर सहमत हो ही जाए।
मान्यवर सुझाव ये था कि अब तो देश में नेता और बाबा इंडस्ट्री तेजी से फल-फूल रही हैं। बस चौपाल में बाबाओं और धर्माचार्यों को लेकर प्रसंग शुरू हो गया। सभी लोगों ने कहा कि इस व्यापार में सुरसा की तरह ग्रोथ हो रही है। आजकल टीवी चैनलों और अखबारों में एक बाबा द्वारा एक बच्ची से किए गए दुष्कर्म की खबर सुर्खियों में बनी हुई है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब किसी बाबा या धर्माचार्य पर इस तरह के आरोप लगे हैं। एक बहुत बड़े संत हुआ करते थे कर्नाटक में। वे अपनी एक अनुयायी के साथ काफी अंतरंग अवस्था में पाए गए थे। काफी हो-हल्ला मचा था कुछ समय के बाद मामला शांत हो गया। ऐसे ही एक कथित बाबा थे दिल्ली में ही, जब पड़ताल हुई तो सच की परतें प्याज के छिलकों की तरह उतरती चली गईं। ये कथित बाबा लड़कियों के सप्लायर थे और काम में किसी तरह की कोई आंच ना आए, इसलिए उन्होंने बाबा का चोला पहन लिया था। इस तरह के कई अन्य मामले आपको इतिहास में देखने को और पढ़ने को मिल जाएंगे।
हां तो उक्त बाबा पर नाबालिग से सेक्स का आरोप लगा है, तभी से नेता इंडस्ट्री पीछे छूट गई है और फिर से बाबा इंडस्ट्री पर चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। आइए सुनाते हैं कि धर्मगुरुओं और बाबा इंडस्ट्री के लाभ ही लाभ। इसी दौरान चर्चा में किसी ने कहा कि, मार्केट में 100 लोग हैं। इनमें से एक धर्माचार्या बन जाता है और 5 उसके अनुयायी बन जाते हैं। साथ ही एक-दो चेलियां, जो कि बेरोजगारी के दौर में ‘पेड’ भी मिल जाएंगी। लो शुरू हो गया अपना काम। इसी बीच फिर एक आदमी बोला, भइया अच्छे कपड़े, इत्र, सुगंधित फूल माला वो भी ऐसी जो कि हमें अपनी शादी में वरमाला में भी नहीं नसीब हुई थी। पांच-दस किलो फूल, ‘पेड’ मीडिया का सहारा और चालू अपना धंधा। दिन-दूनी रात चौगुनी की तरह बढ़ते अनुयायी और बढ़ता प्रॉफिट। तभी एक व्यापारी भाई ने कहा, भइया आप सीधे आदमी हैं। कहीं ऐसा ना हो कि नैया बीच में ही डूब जाए। मैंने बड़े-बड़े धर्माचार्यों, बाबाओं और गुरुओं की जीवनी पढ़ी है, जो जितना बड़ा दुष्ट व्यक्ति था या अनैतिक कामों में माहिर रहा उस बाबा का उतना ही बड़ा साम्राज्य है। अगर आप नहीं मानते हो तो मैं आपको दिखा देता हूं कि ऐसे कई स्वामी हैं, जिन्होंने कि जमीनों पर कब्ज़ा नहीं किया। हमने तो घर के पास में एक फुट जमीन ही कब्जाई थी। इस पर ही हमें ये डर सताने लगा कि हमारे कर्मों का भोग हमारे बेटे-पोते भोगेंगे। वहीं इन तमाम बाबाओं का कुछ नहीं बिगड़ता, जिन्होंने कि लाखों गज जमीन हड़प ली है। माफियाओं से भी ज्यादा असलहे इनके पास आपको मिल जाएंगे और सबसे बड़ा असलहा तो इनके अनुयायियों की फौज है, जिनके बीच में इनका एक चेला होता है। इस चेले की पांचों अंगुलियां घी में और सिर कड़ाही में होता है। वह भोग, विलास सहित तमाम सुविधाओं का लाभ उठाता है। उसे भी मालूम है कि बाबा चिरायु तो है नहीं। वह बाबा का चेला बनने की अपेक्षा कहीं और जगह काम करता तो वह केवल दो जून की रोटी ही कमा पाता। यहां बाबाजी की जय-जयकार और उनके डंडे-झंडे लेकर चलने में ही रोज उसके हजार-पांच सौ लोग पैर छूते हैं। साथ ही रोजाना छप्पन भोग खाने को मिलता है सो अलग। साथ ही बढ़िया क्वालिटी के कपड़े, एसी में रहना और आरामदायक गद्दों में सोने का सुख। वहीं शारीरिक भूख भी रोज नए तरीके से मिटती है। अंत में अगर बाबाजी के साम्राज्य में से थोड़ा सा भी हिस्सा मिला तो वह चेला अरबपति तो वैसे ही बन जाएगा।
इस चर्चा में एक आदमी फिर बोला, राजीव भाई हम तो रोज की दिनचर्या में इतने व्यस्त और टेंशन में रहते हैं कि पत्नी के बनाए खाने में नमक कम-ज्यादा होने का ही पता नहीं चल पाता। हमें भी ऐसी ही सुविधाएं मिलें तो भइया हम भी उन लोगों की तरह इंटरनेट पर देख-देखकर, किताबें पढ़-पढ़कर इनसे भी अच्छा प्रवचन दे सकते हैं। आज तो इस पेशे में देखिए। फिर कोई बोला, भाई इस पेशे में पहले वाली बात नहीं रह गई कि केवल बंडी वाले ही आचार्य बनें। अब तो आईएएस, प्रोफेसर और बेरोजगार युवा भी इंग्लिश में गीता और दूसरे धर्मग्रंथ पढ़ते हैं। आप अगर नहीं मानते हैं तो वृंदावन चले जाइए या टीवी पर चलने वाले किसी भी धार्मिक चैनल को चलाइए। ऐसे कई धार्मिक चैनल हैं, जो कि इन बाबाओं के ही रहमों करम पर चल रहे हैं।
हमारी दादी कहती थी कि साधु और आचार्य वो होते हैं कि जिन्हें स्वाद से कोई मतलब ना हो। बस तन ढंकने को लंगोटी। आपने भी कोई ना कोई धर्मग्रंथ पढ़ा होगा। हर धर्म के ग्रंथ का सार यही है कि त्याग में ही जीवन है। आज जिस तरीके से भोग-विलासिता, सेक्स रैकेट, जमीन पर अतिक्रमण, राजनीतिक हस्तक्षेप, कॉर्पोरेट की तरह कामकाज चलाना और कोई भी अनैतिक कार्य करके अपनी चेलियों को भी आगे करके सभ्य पुरुष का मुंह बंद कर देने को साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल करना। मैं यहां किसी भी बाबा, स्वामी या व्यक्ति विशेष अथवा किसी धर्म पर अंगुली नहीं उठा रहा। आप इस लेख को पढ़कर अपने ज्ञान चक्षु खोलिए और आसपास दृष्टि दौड़ाएंगे तो लगेगा कि बाबा, स्वामी, आचार्यों की इंडस्ट्री हर रूप में धन, जमीन, जायदाद, ऐश, अय्याशी, हुकूमत सभी दृष्टिकोण में कितनी तेजी से फल-फूल रही है और आम आदमी जो अपने जीवन की लड़ाई में इतना त्रस्त है कि वो इनके चमचमाते आश्रम, कड़ी सुरक्षा, मीडिया, भक्तों का रेला देखकर भ्रमित हो जाता है। इन बाबाओं के आश्रम में आने वाले 100 में से 25 लोगों के काम बनते तो ईश्वर की कृपा से हैं, लेकिन वो इसका श्रेय संबंधित बाबा को ही देते हैं।
साधु का मतलब होता है अपने कार्य, आचरण और क्रिया कलाप आदि से संयमित जीवन जीने वाला। मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा। अगर आप किसी बाबा के अनुयायी के सामने अगर बाबा के बारे में विरोधी बात कह देंगे तो उसका संयम धरती फाड़कर किसी काले नाग की तरह आपको डंसने के लिए तैयार हो जाएगा। इसका हालिया उदाहरण इंडिया न्यूज पर देखने को मिला कि जब एक घंटे के पैनल डिस्कशन में बाबा के मीडिया प्रवक्ता ने करीब 45 मिनट तक किसी दूसरे को बोलने का ही मौका नहीं दिया। एंकर दीपक चौरसिया खुद को लाचार सा महसूस करने लगे। ऐसे आदमियों की मानसिक स्थिति से आप दो-चार हो गए होंगे कि उन्होंने बात का बतंगड़ कैसे बनाया। ये बात ठीक है कि भारत का संविधान हर किसी को अपनी बात कहने और बोलने का अधिकार देता है, लेकिन हम तो कुछ बोल ही नहीं पाए और उस प्रवक्ता ने अपना टीचरपना झाड़ दिया और डिस्कशन में आए दूसरे लोग मूक दर्शक बने रहे। ये कोई नई बात नहीं है। ऐसे तमाम किस्से आपको अक्सर देखने को मिल जाएंगे। इसमें तीन चीजें प्रमुख हैं। सेक्स, जमीन पर कजा और दूसरे के विवाद सुलझाने के लिए पंचानना। साथ ही अपने उत्पादों की एक इंडस्ट्री लगाना। स्थिति ये है कि आज आम आदमी की आस्था और विश्वास साधुओं पर से उठता जा रहा है, क्योंकि जब साधुओं द्वारा किसी की बहन-बेटियों से दुष्कर्म जैसी घटनाएं सामने आती हैं तो आम आदमी बेबस होकर ये सब देखता रहता है। उसे एक घृणित समाज की अनुभूति होती है।
मेरा पाठकों को बताने का तात्पर्य ये है कि लगभग हर बड़े शहर में बाबाओं के आश्रम चल रहे हैं। उनके प्रति आस्था होना बुरी बात नहीं है, लेकिन इसमें इतने अंधे भी ना हो जाएं कि अपनी बहन-बेटी को पांचाली बना दें या किसी बाबा को अपनी जमीन-जायदाद सौंप दें।
मान्यवर सुझाव ये था कि अब तो देश में नेता और बाबा इंडस्ट्री तेजी से फल-फूल रही हैं। बस चौपाल में बाबाओं और धर्माचार्यों को लेकर प्रसंग शुरू हो गया। सभी लोगों ने कहा कि इस व्यापार में सुरसा की तरह ग्रोथ हो रही है। आजकल टीवी चैनलों और अखबारों में एक बाबा द्वारा एक बच्ची से किए गए दुष्कर्म की खबर सुर्खियों में बनी हुई है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब किसी बाबा या धर्माचार्य पर इस तरह के आरोप लगे हैं। एक बहुत बड़े संत हुआ करते थे कर्नाटक में। वे अपनी एक अनुयायी के साथ काफी अंतरंग अवस्था में पाए गए थे। काफी हो-हल्ला मचा था कुछ समय के बाद मामला शांत हो गया। ऐसे ही एक कथित बाबा थे दिल्ली में ही, जब पड़ताल हुई तो सच की परतें प्याज के छिलकों की तरह उतरती चली गईं। ये कथित बाबा लड़कियों के सप्लायर थे और काम में किसी तरह की कोई आंच ना आए, इसलिए उन्होंने बाबा का चोला पहन लिया था। इस तरह के कई अन्य मामले आपको इतिहास में देखने को और पढ़ने को मिल जाएंगे।
हां तो उक्त बाबा पर नाबालिग से सेक्स का आरोप लगा है, तभी से नेता इंडस्ट्री पीछे छूट गई है और फिर से बाबा इंडस्ट्री पर चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। आइए सुनाते हैं कि धर्मगुरुओं और बाबा इंडस्ट्री के लाभ ही लाभ। इसी दौरान चर्चा में किसी ने कहा कि, मार्केट में 100 लोग हैं। इनमें से एक धर्माचार्या बन जाता है और 5 उसके अनुयायी बन जाते हैं। साथ ही एक-दो चेलियां, जो कि बेरोजगारी के दौर में ‘पेड’ भी मिल जाएंगी। लो शुरू हो गया अपना काम। इसी बीच फिर एक आदमी बोला, भइया अच्छे कपड़े, इत्र, सुगंधित फूल माला वो भी ऐसी जो कि हमें अपनी शादी में वरमाला में भी नहीं नसीब हुई थी। पांच-दस किलो फूल, ‘पेड’ मीडिया का सहारा और चालू अपना धंधा। दिन-दूनी रात चौगुनी की तरह बढ़ते अनुयायी और बढ़ता प्रॉफिट। तभी एक व्यापारी भाई ने कहा, भइया आप सीधे आदमी हैं। कहीं ऐसा ना हो कि नैया बीच में ही डूब जाए। मैंने बड़े-बड़े धर्माचार्यों, बाबाओं और गुरुओं की जीवनी पढ़ी है, जो जितना बड़ा दुष्ट व्यक्ति था या अनैतिक कामों में माहिर रहा उस बाबा का उतना ही बड़ा साम्राज्य है। अगर आप नहीं मानते हो तो मैं आपको दिखा देता हूं कि ऐसे कई स्वामी हैं, जिन्होंने कि जमीनों पर कब्ज़ा नहीं किया। हमने तो घर के पास में एक फुट जमीन ही कब्जाई थी। इस पर ही हमें ये डर सताने लगा कि हमारे कर्मों का भोग हमारे बेटे-पोते भोगेंगे। वहीं इन तमाम बाबाओं का कुछ नहीं बिगड़ता, जिन्होंने कि लाखों गज जमीन हड़प ली है। माफियाओं से भी ज्यादा असलहे इनके पास आपको मिल जाएंगे और सबसे बड़ा असलहा तो इनके अनुयायियों की फौज है, जिनके बीच में इनका एक चेला होता है। इस चेले की पांचों अंगुलियां घी में और सिर कड़ाही में होता है। वह भोग, विलास सहित तमाम सुविधाओं का लाभ उठाता है। उसे भी मालूम है कि बाबा चिरायु तो है नहीं। वह बाबा का चेला बनने की अपेक्षा कहीं और जगह काम करता तो वह केवल दो जून की रोटी ही कमा पाता। यहां बाबाजी की जय-जयकार और उनके डंडे-झंडे लेकर चलने में ही रोज उसके हजार-पांच सौ लोग पैर छूते हैं। साथ ही रोजाना छप्पन भोग खाने को मिलता है सो अलग। साथ ही बढ़िया क्वालिटी के कपड़े, एसी में रहना और आरामदायक गद्दों में सोने का सुख। वहीं शारीरिक भूख भी रोज नए तरीके से मिटती है। अंत में अगर बाबाजी के साम्राज्य में से थोड़ा सा भी हिस्सा मिला तो वह चेला अरबपति तो वैसे ही बन जाएगा।
इस चर्चा में एक आदमी फिर बोला, राजीव भाई हम तो रोज की दिनचर्या में इतने व्यस्त और टेंशन में रहते हैं कि पत्नी के बनाए खाने में नमक कम-ज्यादा होने का ही पता नहीं चल पाता। हमें भी ऐसी ही सुविधाएं मिलें तो भइया हम भी उन लोगों की तरह इंटरनेट पर देख-देखकर, किताबें पढ़-पढ़कर इनसे भी अच्छा प्रवचन दे सकते हैं। आज तो इस पेशे में देखिए। फिर कोई बोला, भाई इस पेशे में पहले वाली बात नहीं रह गई कि केवल बंडी वाले ही आचार्य बनें। अब तो आईएएस, प्रोफेसर और बेरोजगार युवा भी इंग्लिश में गीता और दूसरे धर्मग्रंथ पढ़ते हैं। आप अगर नहीं मानते हैं तो वृंदावन चले जाइए या टीवी पर चलने वाले किसी भी धार्मिक चैनल को चलाइए। ऐसे कई धार्मिक चैनल हैं, जो कि इन बाबाओं के ही रहमों करम पर चल रहे हैं।
हमारी दादी कहती थी कि साधु और आचार्य वो होते हैं कि जिन्हें स्वाद से कोई मतलब ना हो। बस तन ढंकने को लंगोटी। आपने भी कोई ना कोई धर्मग्रंथ पढ़ा होगा। हर धर्म के ग्रंथ का सार यही है कि त्याग में ही जीवन है। आज जिस तरीके से भोग-विलासिता, सेक्स रैकेट, जमीन पर अतिक्रमण, राजनीतिक हस्तक्षेप, कॉर्पोरेट की तरह कामकाज चलाना और कोई भी अनैतिक कार्य करके अपनी चेलियों को भी आगे करके सभ्य पुरुष का मुंह बंद कर देने को साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल करना। मैं यहां किसी भी बाबा, स्वामी या व्यक्ति विशेष अथवा किसी धर्म पर अंगुली नहीं उठा रहा। आप इस लेख को पढ़कर अपने ज्ञान चक्षु खोलिए और आसपास दृष्टि दौड़ाएंगे तो लगेगा कि बाबा, स्वामी, आचार्यों की इंडस्ट्री हर रूप में धन, जमीन, जायदाद, ऐश, अय्याशी, हुकूमत सभी दृष्टिकोण में कितनी तेजी से फल-फूल रही है और आम आदमी जो अपने जीवन की लड़ाई में इतना त्रस्त है कि वो इनके चमचमाते आश्रम, कड़ी सुरक्षा, मीडिया, भक्तों का रेला देखकर भ्रमित हो जाता है। इन बाबाओं के आश्रम में आने वाले 100 में से 25 लोगों के काम बनते तो ईश्वर की कृपा से हैं, लेकिन वो इसका श्रेय संबंधित बाबा को ही देते हैं।
साधु का मतलब होता है अपने कार्य, आचरण और क्रिया कलाप आदि से संयमित जीवन जीने वाला। मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा। अगर आप किसी बाबा के अनुयायी के सामने अगर बाबा के बारे में विरोधी बात कह देंगे तो उसका संयम धरती फाड़कर किसी काले नाग की तरह आपको डंसने के लिए तैयार हो जाएगा। इसका हालिया उदाहरण इंडिया न्यूज पर देखने को मिला कि जब एक घंटे के पैनल डिस्कशन में बाबा के मीडिया प्रवक्ता ने करीब 45 मिनट तक किसी दूसरे को बोलने का ही मौका नहीं दिया। एंकर दीपक चौरसिया खुद को लाचार सा महसूस करने लगे। ऐसे आदमियों की मानसिक स्थिति से आप दो-चार हो गए होंगे कि उन्होंने बात का बतंगड़ कैसे बनाया। ये बात ठीक है कि भारत का संविधान हर किसी को अपनी बात कहने और बोलने का अधिकार देता है, लेकिन हम तो कुछ बोल ही नहीं पाए और उस प्रवक्ता ने अपना टीचरपना झाड़ दिया और डिस्कशन में आए दूसरे लोग मूक दर्शक बने रहे। ये कोई नई बात नहीं है। ऐसे तमाम किस्से आपको अक्सर देखने को मिल जाएंगे। इसमें तीन चीजें प्रमुख हैं। सेक्स, जमीन पर कजा और दूसरे के विवाद सुलझाने के लिए पंचानना। साथ ही अपने उत्पादों की एक इंडस्ट्री लगाना। स्थिति ये है कि आज आम आदमी की आस्था और विश्वास साधुओं पर से उठता जा रहा है, क्योंकि जब साधुओं द्वारा किसी की बहन-बेटियों से दुष्कर्म जैसी घटनाएं सामने आती हैं तो आम आदमी बेबस होकर ये सब देखता रहता है। उसे एक घृणित समाज की अनुभूति होती है।
मेरा पाठकों को बताने का तात्पर्य ये है कि लगभग हर बड़े शहर में बाबाओं के आश्रम चल रहे हैं। उनके प्रति आस्था होना बुरी बात नहीं है, लेकिन इसमें इतने अंधे भी ना हो जाएं कि अपनी बहन-बेटी को पांचाली बना दें या किसी बाबा को अपनी जमीन-जायदाद सौंप दें।
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