शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

अभावग्रस्त प्रतिभाओं को मुहैया कराएं उचित प्लेटफार्म

हालिया उपलधियों के सफर पर अगर गौर फरमाएं तो उसमें 90 फीसदी अभावग्रस्त और पिछड़े लोगों ने एक मुकाम हासिल कर गांव शहर और देश का नाम रोशन किया। साफ तौर पर हम ये कह सकते हैं कि पिछड़े इलाकों की वो प्रतिभाएं दो जून की रोटी और अन्य सुविधाएं ना होते हुए भी विश्व पटल पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाकर देश का नाम रोशन करती हैं। यह कहानी आज की नहीं है, ऐसा निरंतर देखने को मिल जाएगा। किसी भी क्षेत्र का धु्रव तारा हो, उसने सामाजिक, आर्थिक और पिछड़ेपन से लड़कर अपने पसंद के क्षेत्र (खेल, मनोरंजन, विज्ञान, शिक्षा आदि) में उपलधि हासिल की है।
इसका ताजा उदाहरण झारखंड की आदिवासी लड़कियां हैं, जिन्होंने कि देश के राष्ट्रीय खेल कहे जाने वाले हॉकी की विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में अपनी प्रतिभा का  जलवा बिखेरा। ये तमाम लड़कियां उन जगहों से आती हैं कि जहां रोजगार के माध्यम ना के बराबर हैं और वहां लड़कियों की तस्करी और बाल विवाह आम हैं। राज्य व केंद्र सरकारों के असहयोग रवैये के बावजूद हमारी ये मेधाएं अपनी लगन और हौसलों से अपनी जगह बना पाती हैं। ऐसी ही प्रतिभाओं के लिए किसी शायर ने कहा है

परों से नहीं हौसलों से उड़ान होती है
आसमां में एक पत्थर तो उछालो यारो।

हमारे आसपास के क्षेत्र में ही इस तरह के सैकड़ों उदाहरण इतिहास के पन्नों में कैद हैं। अगर हम आगरा मंडल और उसके आसपास की जगहों की ही बात करें तो हाल में ही खेल जगत में मथुरा की अनीता, आगरा का जिम्नास्ट boby, नृत्य में स्पर्श श्रीवास्तव और गायन में हेमंत ब्रजवासी, सोलर कार बनाने वाले धीरज मिश्रा और इनसे भी एक कदम आगे आठवीं पास एक जूते के कारीगर ने जूते की तकनीक पर किताब  लिखकर अपनी बौद्धिक क्षमता का बेजोड़ उदाहरण पेश किया। ऐसे सैकड़ों उदाहरण, मंडल, प्रदेश, राज्य, देश और विदेश में कार्यरत हैं। हम इनकी अभावग्रस्त जिंदगी और बिना कोई निर्देशन व सरकार व प्रशासन के असहयोग रवैये, भ्रष्टाचार और कई प्रतिभाओं को अन्य प्रकार की कई परेशानियों की खबर आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं। इसके बावजूद अपनी ये प्रतिभाएं अपने बल पर अपनी मंजिल पा ही लेती हैं। जब  इन प्रतिभाओं की जुबानी उनके अभाव और शोषण की कहानी सुनते हैं कि कैसे ये राजनीतिक हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद से लड़कर अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं तोास आंखों से आंसू निकल आते हैं औ मन करता है कि ऐसी प्रतिभाओं को अगर हम कुछ और नहीं दे सकते तो कम से कम सम्मान देकर उनकी हौसला अफजाई तो कर ही सकते हैं। ऐसा करके हम अपने आसपास एक और ‘एकलव्य’ पैदा करने में अपनी भूमिका निभा ही सकते हैं, लेकिन आज भारत की वर्तमान व्यवस्था में ऐसे लोग चार दिन की चांदनी की तरह टिमटिमाते हैं और अपने जीवनयापन के लिए लड़ते-लड़ते मर जाते हैं। उनोचारों की दुर्दशा और स्थिति ऐसी हो जाती है कि वो किसी के आगे रो भी नहीं पाते हैं। अगर हम भारत को ओलंपिक जैसी प्रतियोगिता में क्षितिज पर देखना चाहते हैं तो सरकार के साथ ये हमारी जिम्मेदारी है कि अभावों व तंगी केाावजूद ऐसी वर्तमान व भावी प्रतिभाओं को हम सही दिशा, निर्देश, आर्थिक-तकनीक सहयोग के साथ ईमानदारी सेािना किसी भेदभाव के उनकी प्रतिभा निखारने में सरकार के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाएं ताकि भविष्य में किसी भीाड़ी स्पर्धा में ये प्रतिभाएं असफल ना हों। खैर जो भी हो हम ऐसी प्रतिभाओं को सैल्यूट करते हैं।
लेखक का आगरा के लोगों से निवेदन है कि राष्ट्रहित में ऐसी प्रतिभाओं को उभारने के लिए शासन-प्रशासन से उन्हें मदद उपलध कराएं। साथ ही ऐसी व्यवस्थाानाएं कि इन प्रतिभाओं को रोजगार के स्थायी साधन भी उपलध हों।

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