शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

कितनी जायज है छोटे राज्यों की मांग


छोटे राज्य की मांग स्वार्थ की पूर्ति है या सुशासन की इच्छा, लेखक कि  समझ से ये बात परे है.ऐसा इसलिए क्योंकि अगर हम ये मानते हैं कि  भारत की जो संस्कृति है उसका विश्व में  कोई तोड़ नहीं है तो भारत में  अलग-अलग राज्यों की मांग बेमानी है. क्योंकि भारत में  सामूहिक परिवारवाद के कारण  हर समस्या से लड़ना और कोई भी भूखा न सोये इस बात का ध्यान रखना ये मौलिक अनुभूति के साथ ही समाज में  एक  मजबूत परिवार की छवि पेश करता है. यहाँ ये बात गौर है करने लायक है कि  बचपन में  एक  कहानी पढ़ी थी   कि  एक  पिता अपने को लकड़ी का खुला हुआ गट्ठर देता है और कहता है कि  लकड़ी को एक -एक  कर तोड़ो और बीटा ऐसा ही करता है तो साडी लकडियाँ  टूट जाती हैं. इसी क्रम मैं हम अंग्रेजों  के किए  हुए कृत्यों को आज भी संस्मरण की तरह याद करते हैं की उन्होंने फूट  डालो और राज करो की नीति  से देश पर राज किया था. अंग्रेजों  के आने से पहले तत्कालीन राजाओं की अदूरदर्शी नीतियों के चलते भारत छोटे-छोटे राज्यों में  बंटा  था. अंग्रेजों ने इसका भरपूर फायदा उठाया और डिवाइड एंड रूल की नीति  से राजाओं को आपस में  लड़वाकर  देश पर आधिपत्य किया और भारतीयों  को राजबहादुर जैसी उपाधि देकर अपने हितों की पूर्ति की. 
आज बड़ा सवाल ये है की क्या वर्तमान राजनीती भी कहीं उसी ओर तो नहीं जा रही है और कहीं प्रत्येक दल के नेता अपने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अलग-अलग लकड़ियों के गट्ठर के रूप मैं पेश करके राज्यों का बंटवारा कर अपनी राजनीतिक और अलग अलग तरह की महत्वाकांक्षा की पूर्ति करने की तो नहीं सोच रहे. ऐसा इसलिए क्योंकि एक  कारोबारी और पारिवारिक द्रष्टिकोण से जब परिवार का बंटवारा होता है तो तमाम तरह के खर्च और जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ जाता है और ऐसे समय का फायदा अवांछनीय तत्व के लोग उठाते हैं इस तरह का प्रत्यक्ष उधाहरण झारखण्ड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में  देख सकते हैं. जब हम अलग राज्य बनाने की मांग करते हैं तो नया राज्य जिसमें  कोई डायरेक्ट उत्पादन न होता हो या उस राज्य में  खनिज सम्पदा न हो तो उसे तमाम खर्च का बोझ उठाना होता है. साथ ही छोटे राज्यों में  अपराध को भी बढ़ावा मिलता है क्योंकि अपराधी अपराध करने के बाद दुसरे राज्य में  चले जाते हैं. वो लोग छोटे राज्य बनाये जाने के पक्षधर हैं मुझे उनकी दलीलों से सहमति  नहीं है कि  छोटे राज्यों में  शासन करने में  आसानी होगी और वे राज्य ज्यादा तरक्की करेंगे। क्योंकि अगर देखें तो देश के नक़्शे में  गुजरात, तमिलनाडु, कर्णाटक  और राजस्थान जैसे बड़े राज्य भी हैं जो कि  न केवल सुशासित हैं बल्कि प्रतिदिन तरक्की के नए आयाम गढ़ रहे हैं. जब तक शासन में  बैठे लोग या राजनेता अपने राज्य और जनता के प्रति   वफादार नहीं होंगें  तब अगर किसी मंडल को भी अगर राज्य बना दिया जाये तो वहां भी कुशासन और स्वार्थ हमेशा हावी रहेगा।
तेलंगाना का नया राज्य बनना आज सभी राजनीतिक दलों के लिए संजीवनी का काम कर रहा होगा, क्योंकि अब सभी दल अपने कार्यकर्ताओं के साथ अपने इलाके में छोटे राज्य की मांग के लिए सड़कों पर उतर आएंगे। अगर आप उनसे छोटे राज्य बनाने के 5 फायदे पूछ  लें तो शायद वो 2 से ज्यादा बता भी न पाएं। आज के hitech दौर मेपरिवहन के बेहतरीन और सहज-सुलभ साधनों के चलते प्रदेश के किसी भी छोर  से राजधानी पहुंचना मुश्किल नहीं हैं. प्रदेश अपराधमुक्त और सुशासित होने पर उसके शासक प्रदेश की GDP के बारे में  मंथन करेंगे। ऐसा होने पर हर राज्य अपनी कार्यकुशलता के बूते न केवल भारत बल्कि दुनिया में  अपनी छाप छोड़ सकने में  कामयाब हो सकेगा। 
     एक  और मजे की बात है कि  राजनीतिक और समाज सेवियों की तरह मीडिया और सोशल मीडिया में  भी इस तरह की ख़बरों को छापने  की होड़ सी लग गयी है, जबकि हमारी ये मौलिक जिम्मेदारी होनी चाहिए कि  किस बिना, क्यों, क्या, कैसे, कब इन सारे  पहलुओं पर चिंतन करने के बाद ही इस मांग को उठाना चाहिए। अगर आपको लगता है  कि बड़े राज्यों से टूटकर छोटे राज्य बनें तो लेखक को ये समझाने का प्रयास करें कि  ऐसा आखिर क्यों हो. अगर हम अपने प्रदेश के कई टुकड़े कर भी दे तो ये बड़ा सवाल है कि इससे आमजन को तो कुछ नहीं मिलेगा बल्कि तमाम नेता ही लूट -खसोट मचा देंगे।                                                                                                                                                                                                                                                             
















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