आइये देखते हैं प्याज का प्यार, पेट्रोल की मार क्या गुल खिलाती है और कितने लोगों को रोजगार के साथ कई मुद्दे दे जाती है। एक ओर राजनीतिक दल चाहे सेंसेक्स का घटना-बढ़ना, मार्केट से खाद्य पदार्थों का गायब होना या उनके रेट में इजाफा होना इन जैसे कई मुद्दों को लेकर सत्ताधारी दल को घेरने से लेकर आम जन की आवाज उठाने के लिए वे जनता के हितैषी बन जाते हैं और ऐसे-ऐसे हथकंडे अपनाते हैं कि लगातार मीडिया की सुर्खियां बटोरते रहे। ऐसा करके शायद वे खुद को देश का सबसे बड़ा शुभचिंतक सिद्ध करना चाहते हैं। इसके लिए वे पुतला दहन, रैली, जाम तथा हल्लाबोल जैसे तमाम तरह के हथकंडे अपनाते हैं। गधा सवारी सहित अनेक ढोंगी तरीकों से वे जनता के हमदर्द बनकर उनके घरों में घुसने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा जब-जब आम आदमी से जुड़ी चीजें महंगी होती हैं तो वे एक-दो ट्रक खरीदकर जनता में बंटवा देते हैं। हालिया प्याज के बढ़ते दामों के बाद भी ऐसा ही देखने को मिला है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अपना प्यार, अरे प्यार नहीं प्याज की 1000 मोबाइल वैन दिल्ली में चलवा दी हैं, जो कि अलग-अलग जगहों पर 50 रुपये किलो की दर से लोगों को प्याज बेचेंगी। दिल्ली सरकार का यह कदम वोटरों को अपने पाले में करने वाले उन कामों जैसे ही कामों में से एक है कि जैसे चुनाव से पहले वाली रात को वोटर को अपने पाले में करने के लिए उसे पैसे और चुनाव का लालच दिया जाता है और तो और हमारे देश का प्रबुद्धजीवी वर्ग और चित्रकार भी अपने-अपने तरीकों से कला का प्रदर्शन करते हैं या लोगों का मनोरंजन। आखिरकार उन्हें काम मिलने के साथ ही कला के प्रदर्शन का मौका जो मिल जाता है।
ऐसे समय में दुनिया भर के लोग कविवर बन जाते हैं और अपनी कविता व कार्टून फेसबुक जैसी सोशल साइट पर अपलोड कर अपनी छिपी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। आजकल फेसबुक पर मैं भी खोज रहा हूं प्याज जड़ी हुई सोने की अंगूठी को। इसमें सोने की रिंग में किसी डायमंड की भांति प्याज को बेहद खूबसूरती के साथ जड़ा गया है। ना तो आज किसी मध्यमवर्गीय के पास सोना खरीदने के लिए धन है और ना ही दो जून की रोटी अपनी इच्छानुसार साग-सब्जी से खाने की हिम्मत। मैं अपनी उम्र के इस पड़ाव में अपने ससुर से ये भी नहीं कह सकता कि ससुरजी दहेज में दी गई कार ले लो और मुझे हर माह एक निश्चित रकम का पेट्रोल भिजवा दिया करो। आज जब बेटा पेट्रोल के लिए पैसे की मांग करता है तो ये बात जेहन में आने के साथ-साथ पर्यावरण प्रेम भी जाग उठता है और मैं उसे ई-बाइक के फायदे गिनाने शुरू कर देता हूं।
बाप सेर तो बेटा सवा सेर
ऐसे में मनन करना पड़ता है कि क्या सुरसा की तरह बढ़ रही महंगाई कहीं हमारे नेताओं के लिए तो वरदान साबित नहीं हो रही। अपनी बात को आसानी से वोटरों तक पहुंचाने के लिए। वाह रे मीडिया गरीब को खाने को दो जून की रोटी नहीं, प्याज के महंगे होने की खार छापकर गरीब की आत्मा को तड़पाते हो। दो जून के लिए गरीब के पास आटा तो है नहीं टीवी स्क्रीन पर प्याज दिखाकर उसकी गरीबी और लाचारी का मजाक क्यों बनाते हो। आप तो गरीबों के साथ ऐसा ना करो। प्रबुद्ध वर्ग के पास हास-उपहास का समय नहीं है। उन्हें तो पेट्रोल और प्याज के कार्टूनों को देखकर या पढ़कर आनंद लेने दो और हमें बख्शो। साथ ही दो जून की रोटी का जुगाड़ करने के लिए कमाने को जाने दो।
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जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya lekh hai sir..mahangai ki mar se aam admi ki kamar toot chuki hai..uske dard ko shabdo ke madhyam se ujagar krne ka achchha prayas...
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