शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

आखिर किस दिशा में जा रहे हैं हम

सभ्यता और तहजीब ये दो वस्तुएं मानव के वो आभूषण हैं जो कि  कंगाल को अमीर और अमीर को कंगाल, निरक्षर को साक्षर और साक्षर को निरक्षर बना देते हैं. तालीम की उंची-उंची  डिग्री और विवि  का आज जिस तरीके से विस्तार हो रहा है और आदमी पढाई पूरी होने के  बाद मानव होने के प्रमाण दे रहा है और अपने ज्ञान से समाज को लाभान्वित कर रहा है उसके दो पहलु हैं. एक  पहलू  ऊपर वाला हिस्सा है तो दूसरा हिस्सा इन सब ज्ञान और पद को प्राप्त करने और सामाजिक स्थान पाने के बावजूद भी अपनी जबान से इतनी  और गैर जिम्मेदारी के साथ सामाजिक व्यस्थाओं और नारी के प्रति अशोभनीय बात उगलकर असभ्यता का परिचय दे रहा है. अगर हम देखें तो रोज ही कोई न कोई ऐसा अशोभनीय वकतव्य कहीं न कहीं किसी अखबार के मार्फ़त हम लोगों की जानकारी में  आता है, जैसे हाल ही में  एक  वरिष्ट केंद्रीय मंत्री जयराम नरेश ने एक  मोती डॉक्टर को eyecamp में  road रोलर कहा था. कांग्रेस  के एक  महा सचिव तो अक्सर किसी न किसी  के खिलाफ अशोभनीय टिप्पणी  करते ही रहते हैं
हमारा प्रदेश भी इस मामले में  पाकसाफ नहीं है. बात चाहे पूर्ववर्ती सरकार  की हो या वर्तमान सरकार  की. वर्तमान सरकार के एक  मंत्री भी अपने गृह जनपद में महिला  डीएम के प्रति अशोभनीय टिप्पणी कर अपनी ही किरकिरी करा चुके हैं. वैसे इस तरह का चलन तो बॉलीवुड में  भी खूब है. जहाँ अभिनेताओं द्वारा अपने विरोधी अभिनेताओं के बारे में  अनर्गल बातें कहकर खूब सुर्खियां बटोरी जाती है. इस कड़ी में  समाज का जो पढ़ा लिखा तबका है वो भी अछूता  नहीं है. बंद कमरे में  याआपस में  इस तरह की टिप्पणी दोस्तों के बीच  तक तो ठीक है, लेकिन सामाजिक प्लेटफार्म या कार्यस्थल पर ऐसी टिप्पणी सामने वाले को iritate करती है. कई बार देखा गया है कि  ऐसी घटना के पीड़ित कई दिनों तक मानसिक वेदना को झेलते हैं और उन्हें डॉक्टर की सलाह की भी जरुरत भी पड़ती है.
यहाँ ये प्रश्न उठता  है कि कोई कॉमन मैन ऐसा बयां देता है तो समाज का सभ्य  तबका उसे जाहिल और गवांर कहकर उसे कोसता है. ऐसा करके वो खुद को पाक साफ़ दिखाने  की कोशिश करता है. जो लोग समाज को एक  दिशा देने का काम करते  हैं उनकी टिपण्णी पर या तो हम उनके जिन्दादिली की बात कहकर तालियाँ बजाते          हैं या आम आदमी मन मसोस कर रह जाता है. यहाँ ये सवाल है कि  ऐसी टिप्पणियां क्या मनोवैज्ञानिक विकार हैं या अपने पद की हनक. ऐसे में  निश्चित रूप से एक  मुहावरा याद आता है कि
                                                               
                                                 तुम कहो तो 'राम' और हम कहें तो 'मरा'     







                                                                                                                                                                                                                                                   

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